मन में झंझावात


मन में झंझावात"

दिल के तहखाने में बीता तनहा सारी रात 
कहती क्यों सावन हरजाई लाई है सौगात

स्नेह का सागर भरा हुआ है, क्यूँ मन में अवसाद 
किसको बोलूँ, रूठूं कैसे,  मन में झंझावात 

तिल-तिल दीपक सा जलता मन, लिए स्नेह की आस 
गुजरी यादें, धुमिल हो गईं, इतनी रही बिसात 

समझूं कैसे देगा निशि-दिन, दिल में चोट हजार
प्रेम की भाषा वे बोले पर, ना समझे जज्बात  

आता मौसम जाता मौसम, जीवन में सौ बार 
कुसुम मौसमी होता क्यूँ, है, समझ न आयी बात 

-कुसुम ठाकुर-

माँ मैं तो हारी, आई शरण तुम्हारी,



माँ मैं तो हारी, आई शरण तुम्हारी,
अब जाऊँ किधर तज शरण तुम्हारी 


दर भी तुम्हारा लगे मुझको प्यारा,
 तजूँ मैं कैसे अब शरण तुम्हारी 
माँ .........................................


मन मेरा चंचल, धरूँ ध्यान कैसे,
बसो मेरे मन, मैं शरण तुम्हारी
माँ..........................................


जीवन की नैया मझधार में है, 
पार उतारो मैं शरण तुम्हारी
माँ .................................... 


तन में न शक्ति, करूँ मन से भक्ति 
अब दर्शन दे दो मैं शरण तुम्हारी 
माँ.............................................

- कुसुम ठाकुर -