गुरु गोबिंद दोउ खड़े काके लागूँ पाय.


लोग कहते हैं कि आजकल के बच्चे बड़ों की इज्जत करना नहीं जानते खासकर शिक्षकों का गुरुजनों का। पर यह कहना गलत है। मैं भी कभी शिक्षक थी और मैंने जो महसूस किया वह इसके विपरीत है। आजकल वैसे शिक्षक ही विरले मिलते हैं जिनके लिए ये पंक्तियाँ हैं :
गुरु गोबिंद दोउ खड़े काके लागूँ पाय ,
बलिहारी गुरु आपनो गोबिंद दियो बताय।। 

आजकल शिक्षा सबसे बड़ा व्यापार हो गया है और शिक्षक सबसे बड़े व्यापारी। शिक्षकों में अब विद्या दान वाली भावना ही नहीं रही जिनके वशीभूत हो विद्यार्थी खुद ब खुद उनके व्यवहार और व्यक्तित्व को कब पूजने लगते वह उन्हें भी पता नहीं चलता।  जीवन भर ऐसे गुरु की छवि बच्चों के मन पर छाप छोड़ जाती है। यदि विद्या अर्जन करना तपस्या है तो विद्या दान देना शिक्षकों का कर्तव्य। यदि शिक्षक अपना कर्तव्य बखूबी निभायेंगे तो उन्हें भी विद्यार्थियों से कभी निराशा नहीं होगी। विद्यार्थी इज्जत नहीं देते का राग नहीं अलापेंगे। वैसे अपवाद तो हर जगह होता है।  

आज भी मैं बच्चों के उस प्यार को नहीं भूल पाती जो मुझे एक शिक्षिका के रूप में मिली। यही वह दिन है जब मुझे स्कूल छोड़ने का अफ़सोस होता है । प्रत्येक वर्ष हमारे स्कूल में शिक्षक दिवस मनाई जाती थी। बच्चे बड़े ही मन से हमारे लिए कार्यक्रम तैयार करते और हर वर्ष मैं अपने कक्षा के बच्चों को हिदायत देती कि किसी को कोई उपहार नहीं लाना है, न मेरे लिए न ही किसी और शिक्षक या शिक्षिका के लिए । वे बड़े ही मायूस होकर पूछते "क्यूँ " और मैं उन्हें समझाते हुए कहती बस अपने बागीचे से "एक फूल" ले आना जिसके घर में हो । जिसके घर न हो वे बाज़ार से नहीं लायेंगे। पर मैं उन बच्चों के स्नेह को देखकर दंग रह जाती । सुबह सुबह ज्यों ही मैं अपनी कक्षा पहुँचती एक एक कर बच्चे मेरे सामने आते और अपने हाथों से बनाये हुए कार्ड और अपने बगीचे से लाये हुए फूल मुझे देते।

उनके स्नेह को देख मैं तो भाव विभोर हो जाती । जो बच्चे फूल नहीं भी लाते वे भी औरों के साथ आकर मुझे शिक्षक दिवस की बधाई देते । वे बच्चे मेरी भावनाओं की जो क़द्र करते और सम्मान देते वह मेरे लिए अनमोल उपहार होता । उस कार्ड में वे अपनी भावनाओं को व्यक्त करते जिसे पढ़ मैं आह्लादित हो जाती। आज भी मैं उनमे से कुछ कार्ड रखी हुई हूँ जो बच्चों ने मुझे दिए थे।

आज शिक्षक दिवस के अवसर पर मैं उन सभी बच्चों को , हार्दिक शुभकामनाएँ एवं आर्शीवाद देती हूँ एवं सभी गुरुजनों को नमन करती हूँ।