"कर में हरसिंगार"
श्वेत केसरिया कोमल सुन्दर
हो तुम सौम्य प्रतीक
नम्र भाव को देख कर
भक्त हुए नत शीश
भक्त हुए नत शीश
तुमसे महके चारों दिशाएँ
हो भक्तों के भक्त
कष्ट भी उनके सोचते
गिरो भूमि यह रीति
देख तुम्हारी नम्रता
हुए भक्त विभोर
भूमि दोष देखे नहीं
देव चढ़ावें शीश
कद में छोटे हो मगर
सौरभ मन को भाए
सूचना आगमन का
फल होगा सुखदाय
तन्मय होकर चुन रही
चेहरे पर मुस्कान
शिव की करूँ आराधना
कर में हरसिंगार
-कुसुम ठाकुर-