क्या कहूँ, कब कहूँ,चुप रहूँ या कहूँ ?
अपने दिल की सही दास्ताँ मैं कहूँ ?
मुद्दतों से कभी, दिल की माना नहीं,
अब मैं आहें भरूँ या तकब्बुर कहूँ .
टूटा अब तो वहम, याद आए कसम,
जब मैं तनहा रहूँ, अपने दिल से कहूँ.
आरज़ू थी मेरी, अंजुमन में सही,
बस मैं दीदार करूँ, चाहे कुछ न कहूँ.
- कुसुम ठाकुर-
शब्दार्थ :
तकब्बुर - अभिमान, घमंड
अंजुमन -मजलिस, सभा