" बयाँ हाले दिल का करूँ अब मैं कैसे"
बयाँ हाले दिल का करूँ अब मैं कैसे
खलिश को छुपाकर रहूँ अब मैं कैसे
बुझी कब ख्वाहिश नहीं इल्म मुझको
तन्हाइयाँ भी सहूँ अब मैं कैसे
चिलमन से देखी बहारों को जाते
हिले होठ मेरे कहूँ अब मैं कैसे
हो उल्फत की चाहत ये मुमकिन नहीं
रहे दूर चेहरा पढूं अब मैं कैसे
- कुसुम ठाकुर -
शब्दार्थ :
खलिश - कसक, चिंता, आशंका,पीड़ा,
इल्म - ज्ञान, जानकारी
चिलमन - चिक, बांस के फट्टियों का पर्दा