Monday, December 28, 2009

शब्द न मैं दे पाती हूँ



" शब्द न मैं दे पाती हूँ "

शब्दों के बस महाजाल में
उलझ उलझ रह जाती हूँ
लब तो है कहने को उद्धत
कुछ न मैं कह पाती हूँ


भावों की न कमी नयनों में
बस समझ उन्हें न पाती हूँ
उनके नम उद्गारों से क्यों
खुद विचलित हो जाती हूँ


अभिलाषा मेरे स्वभाव का
बस मुखर नहीं हो पाती हूँ
अंतर्मन की भाषा को क्यों
आत्मसात कर जाती हूँ


अंतर्द्वन्द को लिए ह्रदय में
उलझ स्वयं ही जाती हूँ
यह कैसी विह्वलता मेरी
शब्द न मैं दे पाती हूँ

- कुसुम ठाकुर -



Friday, December 18, 2009

जुस्तज़ू

"जुस्तज़ू "

प्यार मैं जो करूँ क्यों बगावत करूँ
कैसे अब मैं न उसकी इबादत करूँ

क्या खता थी मेरी मुझे नहीं है पता
किससे शिकवा करूँ क्या शिकायत करूँ

लब सिले हैं मेरे पर पशेमाँ भी हैं
कैसे इज़हार करूँ न अनायत करूँ

जुस्तज़ू थी मेरी जो मुझे मिल गई
इक कशक आबरू की हिफाज़त करूँ

सब कुसुम सा खिले मुस्कुराए दुनिया में
किसी को भला क्यों मैं आहत करूँ

- कुसुम ठाकुर -

Wednesday, December 16, 2009

बचपन

" बचपन "

याद मुझे बच्चों का बचपन ,
और याद उनका भोलापन ।
भाते थे उनका तुतलाना ,
और सदा उन्हें बहलाना ।

बचपन उनका बीता ऐसे ,
आँख भींचते रह गयी मैं जैसे।
चाहूँ बस स्मृतियों में वैसे ,
संचित कर रख पाऊँ कैसे।

सोच सोच मैं सुख पाऊँ
बिन सोचे न रह पाऊँ
नैनों को बस भरमाऊँ
और स्वयं ही मुस्काऊँ

- कुसुम ठाकुर -

Tuesday, December 15, 2009

मूल्य है हर पल का



"मूल्य है हर पल का"


मूल्य है हर उस पल का ,
चाहे सुख या दुःख के हों ।
दुःख की घड़ियाँ न रहे सब दिन ,
तो सुख की आस निरंतर क्यों हो ।


जो दुःख की घड़ियाँ सहज सँग हो ,
तो सुख बाँटन में भी सुख हो ।
जो मिल जाए, और विश्वास सँग हो ,
तो सुख और दुःख में भेद कम हो ।


सुख में उल्लास बढे विश्वास ,
दुःख में ही पहचान भी तो हो ।
आवे न जो दुःख, इस जीवन में ,
तो सुख का मोल, भी तो कम हो ।।

- कुसुम ठाकुर -


Wednesday, December 9, 2009

खोकर भी पाया इसी जिन्दगी से

" खोकर भी पाया इसी जिन्दगी से"

दिया है बहुत कुछ इस जिन्दगी ने
हँसाकर रुलाया इसी जिन्दगी ने

मझधार में भी छोड़ा जिन्दगी ने
डूबने से उबारा पर जिन्दगी ने

मैं सम्भली नहीं सम्भाला किसी ने
मुझे गर्त में जाने से उबारा किसी ने

करूँ जब शिकायत इस जिन्दगी से
चमत्कार दिखा दे जीवन में फ़िर से

मैं जो कुछ भी चाहूँ इस जिन्दगी से
रागनी बनकर छाये न जाए जिन्दगी से

मैं तो घबरा गयी विषम जिन्दगी से
है खोकर भी पाया इसी जिन्दगी से

- कुसुम ठाकुर -

Tuesday, December 8, 2009

भास्कर श्वेता को शादी की सालगिरह की अनेक शुभकामनाएँ और आशीर्वाद !!

"आशीर्वाद "

करूँ याद रिश्ते का यह दिन ।
हो ह्रदय में सदा कहे मेरा दिल।।

चलो साथ सदा भावे मुझको वह।
दूँ आशीष , कर उठे मेरा यह ।।

जब भी कहूँ, कहूँ बस यही कि ।
सँग दो तुम सदा एक दूजे का ।।

ज्यो हो विश्वास एक दूजे पर ।
आसान डगर तब जीवन भर ।।

- कुसुम ठाकुर -

प्रिय श्वेता/ भास्कर
शादी की सालगिरह की अनेक शुभकामनाएं और आशीर्वाद !!

8 December 2009

Monday, December 7, 2009

कैसे भूलूँ उस पल को !

"कैसे भूलूँ उस पल को यूँ "


कैसे भूलूँ उस पल को यूँ ,
जिसकी तपिश न हुई हो कम ।
दग्ध करे अब भी हर पल ,
थे अवसादों से भरे वे क्षण ।

चाही तो बस इन नयनों से ,
काश ! साथ वे दे पाते ।
अंसुवन को वश में रख लेती ,
तब भी यह दिल भर आता ।


याद जिसे करना चाहूँ मैं ,
उसे तो मैं फ़िर भी भूलूँ ।
पर बीच में वह मंज़र आ जाता ,
उस पल को कैसे भूलूँ ।।

- कुसुम ठाकुर -

Saturday, December 5, 2009

H1 N1 का पूना में प्रकोप और नागरिकों में दहशत !

पूना में बहुत से अन्तराष्ट्रीय स्कूल हैं जिसकी वजह से बच्चों का बाहर के देशों से आना जाना लगा रहता है। अगस्त महीने में पूना में जब स्वाइन फ्लू का प्रकोप सामने आया और एक के बाद एक लोंगों की मृत्यु इस बीमारी से होने लगी तो आम नागरिकों के बीच एक दहशत सी फ़ैल गई । सरकार का स्कूल , कॉलेज, सिनेमा घरों एवं शौपिंग मॉल का बंद करना आग में घी का काम कर गया । आम नागरिकों की मनोरंजन गतिविधियाँ जैसे थम सी गई।

इस सब के बावजूद अच्छी बात यह है कि लोंगो में सफाई और स्वच्छता के प्रति जागरूकता बढ़ी । पर क्या आम जनता को यह ज्ञान है कि उन्हें कौन सी एहतियात बरतनी चाहिए ? सुन लिए मास्क लगाना चाहिए बस दौड़ पड़े मास्क लेने । पूरा शहर यदि जागरूक हुआ तो वह था मास्क के प्रति । मास्क की बिक्री बढ़ गई। कुछ अच्छे ब्रांड की तो काला बाजारी भी होने लगी । हर नुक्कड़ हर दूकान पर मास्क उपलब्ध होने लगा । यहाँ तक कि पान वाले भी मास्क बेचने लगे । घरों और दफ्तरों की साफ़ सफाई करने वाले सफाई कर्मचारी भी मास्क लगाकर काम करने लगे भले ही उनको इसका ज्ञान न हो कि मास्क क्यों लगाईं जाती है और इसके क्या फायदे हैं ।

दफ्तरों में सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा । डेटोल साबुन एवम सफाई करने वाले अन्य रासायनिक पदार्थों की बिक्री और खर्च बढ़ गई ।

कुछ सप्ताह सारे स्कूल, कॉलेज , सिनेमा घर इत्यादि को बन्द करने का प्रशासन ने आदेश दे दिया और बन्द भी रहे। पर कितने दिनों तक बन्द रहते , फिर से खुल गई है और लगा गाड़ी फिर से पटरी पर आ गई । पर स्वाइन फ्लू का दहशत कम नहीं हुआ , डर तो अब तक बनी हुई है । कोई जरा सा छींका नहीं कि लोग उसे घूर कर देखने
लगते हैं । जरा सी सर्दी और बुखार से ही लोग घबरा जाते हैं, चाहे वह साधारण फ्लू ही क्यों न हो । सबके दीमाग में
एक ही बीमारी घूमती है , वह है स्वाइन फ्लू । कहीं यह स्वाइन फ्लू तो नहीं ? सारे स्कूल ,कॉलेज दफ्तर में स्पष्ट हिदायत है , जरा सी सर्दी बुखार हो तो न आयें । ऐसा माहौल है पर क्या पूरे शहर के लिए दो ही अस्पताल काफी है , जहाँ स्वाइन फ्लू की जांच होती है ? क्या "Tamiflu " हर मरीज़ को उपलब्ध हो पाता है या अब भी समय पर इसकी जाँच की सुविधा पर्याप्त है ?

मुझे एक वरिष्ट डॉक्टर से मिलने का मौका मिला था और मैं उनसे स्वाइन फ्लू के विषय में पूछ बैठी थी । उस समय उन्होंने बताया था , अभी पूरी तरह से यह बीमारी नहीं फैली है , न रोकी जा सकी है । महामारी का अंदेशा अब भी काफी है । आज वह सच साबित हो भी रहा है ठंढ में फ़िर से स्वाइन फ्लू का प्रकोप बढ़ गया है ।

Thursday, December 3, 2009

मुझको कब यह वक्त मिला

"मुझको कब यह वक्त मिला "

मुझको कब यह वक्त मिला
कि सोच सकूँ क्या है भला
और क्या बुरा मेरे जीवन
की इस तन्हाई मे ।

मैं कहाँ समझ पाई अपने
अन्दर के उन भावों को
और जो समझूं तो करूँ मैं कैसे
सिंचित उन ख्वाहिशों को ।

पाई ख़ुद को वीराने में
सोची उसको क्षणिक प्रपंच
जीवन का यह सफ़र भी लंबा
  लगता न  कम रेतीला ।

साथ मिला बस चन्द कदमों का
नेह तो अब भी हुआ न कम
साथ साथ तो चल न पाए
पथ प्रदर्शक बन गए हो तुम ।।

- कुसुम ठाकुर -