Wednesday, December 16, 2009

बचपन

" बचपन "

याद मुझे बच्चों का बचपन ,
और याद उनका भोलापन ।
भाते थे उनका तुतलाना ,
और सदा उन्हें बहलाना ।

बचपन उनका बीता ऐसे ,
आँख भींचते रह गयी मैं जैसे।
चाहूँ बस स्मृतियों में वैसे ,
संचित कर रख पाऊँ कैसे।

सोच सोच मैं सुख पाऊँ
बिन सोचे न रह पाऊँ
नैनों को बस भरमाऊँ
और स्वयं ही मुस्काऊँ

- कुसुम ठाकुर -

13 comments:

  1. बचपन उनका बीता ऐसे ,
    आँख भींचते रह गयी मैं जैसे ।
    चाहूँ बस स्मृतियों में कैसे ,
    संचित कर रख पाऊँ वैसे !

    बहुत ही भावमय प्रस्‍तुति ।

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  2. बचपन उनका बीता ऐसे ,
    आँख भींचते रह गयी मैं जैसे ।
    चाहूँ बस स्मृतियों में कैसे ,
    संचित कर रख पाऊँ वैसे !

    बहुत ही भावमय प्रस्‍तुति ।

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  3. बहुत भावपूर्ण रचना ....

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  4. सच ऐसे ही गुजर जाता है,बच्चों का बचपन,वो रूठना,मचलना,तुतलाना....जैसे हमने पल भर को आँखें मिंची हों...बहुत ही सुन्दर रचना

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  5. आपकी पोस्ट पढ़ कर दो पुराने फ़िल्मी गीत याद आ गए... "भला था कितना अपना बचपन...भला था कितना..." और " बचपन के दिन...बचपन के दिन भी क्या दिन थे...उड़ते फिरते तितली संग...
    नीरज

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  6. बचपन उनका बीता ऐसे ,
    आँख भींचते रह गयी मैं जैसे ।
    चाहूँ बस स्मृतियों में कैसे ,
    संचित कर रख पाऊँ वैसे ।
    Bahut sundar !

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  7. नैनों में खुद को भरमाकर किया है बचपन याद।
    हो मुस्कान कसुम के मुख पर सुमन करे फरियाद।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  8. बहुत अच्छी रचना, बधाई स्वीकारें।

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  9. kyaa baat hai bachpan ki ?

    bachpan ki yaaden zindgi ka sabse bada sarmaaya hai !

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  10. बहुत ही बढ़िया रचना है !

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  11. बचपन उनका बीता ऐसे ,
    आँख भींचते रह गयी मैं जैसे ।
    चाहूँ बस स्मृतियों में कैसे ,
    संचित कर रख पाऊँ वैसे ।
    कुसुम जी सच मे सब कल की बातें लहती हैं । बहुत अच्छी रचना है बधाई

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  12. बहुत अच्छी रचना, बधाई स्वीकारें।

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  13. बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......


    संजय कुमार
    हरियाणा
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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