Monday, December 7, 2009

कैसे भूलूँ उस पल को !

"कैसे भूलूँ उस पल को यूँ "


कैसे भूलूँ उस पल को यूँ ,
जिसकी तपिश न हुई हो कम ।
दग्ध करे अब भी हर पल ,
थे अवसादों से भरे वे क्षण ।

चाही तो बस इन नयनों से ,
काश ! साथ वे दे पाते ।
अंसुवन को वश में रख लेती ,
तब भी यह दिल भर आता ।


याद जिसे करना चाहूँ मैं ,
उसे तो मैं फ़िर भी भूलूँ ।
पर बीच में वह मंज़र आ जाता ,
उस पल को कैसे भूलूँ ।।

- कुसुम ठाकुर -

11 comments:

  1. बहुत सुन्दर,

    "कैसे भूलूँ उस पल को !"

    भावपूर्ण कविता
    बधाई स्वीकारें

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  2. चाही तो बस इन नयनों से ,
    काश ! साथ वे दे पाते ।
    अंसुवन को वश में रख लेती ,
    तब भी यह दिल भर आता ।



    उफ़! बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ......

    सुंदर कविता.......

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  3. कैसे भूलूँ उस पल को यूँ ,
    जिसकी तपिश न हुई हो कम ।
    दग्ध करे अब भी हर पल ,
    थे अवसादों से भरे वे क्षण ।
    बेहद लाजबाब भाव , कुसुम जी !

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  4. जी हां कुछ लम्हें ऐसे होते हैं जिन्हें भुलाना मुश्किल होता है

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  5. दुख के नाजुक लम्हे भूलो,
    सुख की घड़ियाँ याद करो।
    बहुत कीमती होते आँसू,
    मत लड़ियाँ बरबाद करो।।

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  6. बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों में बयां बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  7. शायद आपने कविता में अपने मन के किसी कोने में उगे हुए विचार प्रस्तुत किए हैं, हो सकता है हम पूरी तरह न साँझ पाए हों

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  8. भूलना बहुत कठिन है। सुन्दर कविता लिखी है।
    घुघूती बासूती

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  9. बेहतरीन शब्दों से
    बेहतरीन भावों से
    और बेहतरीन काव्य-सौन्दर्य से युक्त
    इस प्यारी रचना के लिए बधाई आपको.........

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  10. nice post

    maine apney blog per ek kavita likhi hai- roop jagaye echchaein- samay ho to padein aur comment bhi dein.

    http://drashokpriyaranjan.blogspot.com

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  11. बहुत सुंदर कविता दीदी!

    जितना सुंदर प्रवाह, उतने ही मोहक शब्द-संयोजन।

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