Friday, December 18, 2009

जुस्तज़ू

"जुस्तज़ू "

प्यार मैं जो करूँ क्यों बगावत करूँ
कैसे अब मैं न उसकी इबादत करूँ

क्या खता थी मेरी मुझे नहीं है पता
किससे शिकवा करूँ क्या शिकायत करूँ

लब सिले हैं मेरे पर पशेमाँ भी हैं
कैसे इज़हार करूँ न अनायत करूँ

जुस्तज़ू थी मेरी जो मुझे मिल गई
इक कशक आबरू की हिफाज़त करूँ

सब कुसुम सा खिले मुस्कुराए दुनिया में
किसी को भला क्यों मैं आहत करूँ

- कुसुम ठाकुर -

20 comments:

  1. बहुत बढ़िया,
    सम्पूर्ण भाव को समेटा है.
    बधाई स्वीकारिये

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  2. लब सिले हैं मेरे पर पशेमाँ भी हैं
    कैसे इज़हार करूँ न शिकायत करूँ

    हृदय की बेचैनी साफ साफ झलक रही है इस शेर में। बहुत सुन्दर भाव की पंक्तियाँ कुसुम जी।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  3. क्या खता थी मेरी मुझे नहीं है पता
    किससे शिकवा करूँ क्या शिकायत करूँ

    सुंदर मन के सुंदर भावों को व्यक्त करती बहुत बढ़िया ग़ज़ल..बधाई

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  4. बेहतरीन..पसंद आई!!

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  5. अच्छी कविता..........
    बधाई !

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  6. जुस्तज़ू थी मेरी जो मुझे मिल गई
    इक कसक आबरू की हिफाज़त करूँ
    बहुत अच्छे भाव।

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  7. प्यार करूँ तो कैसे इजहार ना करू ...कैसे शिकायत ना करू ...
    बहुत खूब ...क्यों ना करे ...!!

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  8. it is a beautiful & meaningful poem . thanx

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  9. बेहद उम्दा व लाजवाब रचना । बहुत-बहुत बधाई आपको

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  10. सब कुसुम सा खिले मुस्कुराए दुनिया में
    किसी को भला मैं आहत क्यों करूँ,
    बहुत सुंदर भाव है। आभार

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  11. लब सिले हैं मेरे पर पशेमाँ भी हैं
    कैसे इज़हार करूँ न शिकायत करू
    बहुत सुन्दर रचना है बधाई

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  12. आप सबों का उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !!

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  13. हर शब्‍द एक गहराई लिये हुये बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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  14. Komal bhavon ki atisundar mugdhkari abhivyakti.....

    Bahut bhut bhut hi sundar rachnaa...man harshit ho gaya padhkar..aabhaar...

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  15. सब कुसुम सा खिले मुस्कुराए दुनिया में
    किसी को भला मैं आहत क्यों करूँ
    ... बहुत खूब, प्रसंशनीय !!!!

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  16. आप सभी को उत्साह वर्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !!

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  17. bahut khub... ur words penetrate deep...

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