" खोकर भी पाया इसी जिन्दगी से"
दिया है बहुत कुछ इस जिन्दगी ने
हँसाकर रुलाया इसी जिन्दगी ने
मझधार में भी छोड़ा जिन्दगी ने
डूबने से उबारा पर जिन्दगी ने
मैं सम्भली नहीं सम्भाला किसी ने
मुझे गर्त में जाने से उबारा किसी ने
करूँ जब शिकायत इस जिन्दगी से
चमत्कार दिखा दे जीवन में फ़िर से
मैं जो कुछ भी चाहूँ इस जिन्दगी से
रागनी बनकर छाये न जाए जिन्दगी से
मैं तो घबरा गयी विषम जिन्दगी से
है खोकर भी पाया इसी जिन्दगी से
- कुसुम ठाकुर -
दिया है बहुत कुछ इस जिन्दगी ने
हँसाकर रुलाया इसी जिन्दगी ने
मझधार में भी छोड़ा जिन्दगी ने
डूबने से उबारा पर जिन्दगी ने
मैं सम्भली नहीं सम्भाला किसी ने
मुझे गर्त में जाने से उबारा किसी ने
करूँ जब शिकायत इस जिन्दगी से
चमत्कार दिखा दे जीवन में फ़िर से
मैं जो कुछ भी चाहूँ इस जिन्दगी से
रागनी बनकर छाये न जाए जिन्दगी से
मैं तो घबरा गयी विषम जिन्दगी से
है खोकर भी पाया इसी जिन्दगी से
- कुसुम ठाकुर -
सुख दुख , खोना पाना , सबकुछ इस जिंदगी में होता है , एकदम सही बात
ReplyDeleteदिया है बहुत कुछ इस जिन्दगी ने ।
ReplyDeleteहँसाकर रुलाया इसी जिन्दगी ने ।।
मझधार में भी छोड़ा जिन्दगी ने।
डूबने से उबारा पर जिन्दगी ने ।।
Bahut sundar !वैसे कुसुम जी आप "हँसाकर रुलाया" की जगह "रुलाकर हंसाया" लिखती तो वह एक सकारात्मक दिशा को इंगित करता !
मैं सम्भली नहीं सम्भाला किसी ने ।
ReplyDeleteमुझे गर्त में जाने से उबारा किसी ने ।।
जिन्दगी को बहुत करीब से महसूसती आपकी यह रचना बहुत ही प्यारी है। देखिये एक कोशिश मेरी भी-
खुशियाँ और गम की थाती है जिन्दगी।
हर रोज नयी बात सिखाती है जिन्दगी
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
सुन्दर रचना है।बधाई।
ReplyDeleteहै खोकर भी पाया इसी जिन्दगी से ।। बहुत सुंदर बात कही आपने, यही जीवन का शास्वत सत्य है।
ReplyDeleteआभार
मझधार में भी छोड़ा जिन्दगी ने।
ReplyDeleteडूबने से उबारा पर जिन्दगी ने ।।
हर रंग को आपने बहुत ही सुन्दर शब्दों में पिरोया है, बेहतरीन प्रस्तुति ।
दिया है बहुत कुछ इस जिन्दगी ने ।
ReplyDeleteहँसाकर रुलाया इसी जिन्दगी ने ।।
... बहुत खूब !!!!!
आपके कविता प्रयास की सराहना अवश्य करूंगा. विचारों के एतबार से भी रचना बेहतर है. आपने अपने अनुभवों का अच्छा इस्तेमाल किया है. लेकिन शास्त्रीयता के हिसाब से कुछ कमियां हैं जिन्हें आपको ही दूर करना होगा. यदि सिर्फ शौक़ के लिए रचनाएँ लिख रही हैं फिर तो कोई बात नहीं, लेकिन, अगर साहित्य के क्षेत्र में कुछ कर दिखने का इरादा है तो शास्त्रीयता सीखनी पड़ेगी. किसी समर्थ रचनाकार से परामर्श करें. मेरी सलाह का बुरा न मानियेगा, हम सभी अंतिम सांस तक विद्यार्थी ही रहेंगे, सीखना एक अच्छी चीज़ है, इसे मानती हैं ना!
ReplyDeleteआप सभी स्नेही जनों का बहुत बहुत आभार !!
ReplyDelete@सर्वत एम जी ,
मैं आपकी बातों से सहमत हूँ , हम सभी सदा विद्यार्थी ही रहेंगे और सीखना अच्छी चीज़ है।
विद्या और सीखने का कोई अंत ही नहीं है। परामर्श के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !
बेहतरीन रचना.........
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना है कुसुम जी.
ReplyDeleteखूबसूरत रचना दीदी। लेकिन सर्वत जमाल साब की टिप्पणी काबिले-गौर है। आपसे जलन हो रही है कि आपको सर्वत साब से टिप्पणी मिली ।
ReplyDeleteहर रंग को आपने बहुत ही सुन्दर शब्दों में पिरोया है, बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDelete