Tuesday, September 29, 2009

चाहत

"चाहत "

जिन भावों की मैं, वर्षों से प्यासी
वह भाव आज, फ़िर से जगी है
जिस चाहत को मैं तो, भूल ही गई थी
वह चाहत मन में, जागृत हुई है
जिन नयनों को मैं, समझी कभी न
वे नयन अब मुझे, भाने लगे हैं
जिस द्वार पर मैं,न तकती थी उसपर
नजर मेरी अब तो, ठहर सी गई है
जिस समर्पण में न मुझे मिलती थी खुशियाँ
वह समर्पण मैं आज करने को उत्सुक
जिन खुशियों की मैं न की थी कल्पना
वह खुशी आज मिल ही गई है

- कुसुम ठाकुर -

Tuesday, September 22, 2009

वे लम्हें

"वे लम्हें "


वे लम्हें भूले नहीं जाते ,
वे वादे चाहूँ भी न भूलूँ ।
पर यह कैसी मजबूरी ,
चाहकर, पाऊँ भी न तुमको ।

खुली हुई आँखों में तुम हो ,
बंद आँखों में भी बसा लूँ ।
व्याकुल हो ढूँढूँ मैं जब जब ,
चाहकर पाऊँ भी न तुमको ।

नैनो की भाषा भी तुम हो ,
चाहत की परिभाषा भी यही पर ,
सोचूँ तो लगे सपना सा ,
चाहकर पाऊँ भी न तुमको ।

अंसुवन की धार भी तुम हो ,
अंजन और श्रृंगार तुम्ही हो ।
पर करूँ कितना भी जतन मैं ,
चाहकर पाऊँ भी न तुमको ।




-कुसुम ठाकुर -

Saturday, September 19, 2009

मैं कैसे करूँ आराधना

"मैं कैसे करूँ आराधना "
 
मैं कैसे करूँ आराधना , 
कैसे मैं ध्यान लगाऊँ । 
द्वार तिहारे आकर मैया , 
मैं कैसे शीश झुकाऊँ । 
 मन में मेरे पाप का डेरा , 
मैं कैसे उसे निकालूं । 
न मैं जानूं आरती बंधन , 
मैं कैसे तुम्हें सुनाऊँ । 
 बीता जीवन अंहकार में , ल
याद न आयी तुम तब । 
अब तो डूब रही पतवार , 
कैसे मैं पार उतारूँ । 
 कर्म ही पूजा रटते रटते ,
 बीता जीवन सारा ।
 पर अब तो तन साथ न देवे ,
 अर्चना करूँ मैं कैसे । 
 मैं तो बस इतना ही जानूँ , 
तू सब की सुधि लेती । 
एक बार ध्यान जो धर ले
दौड़ी उस तक आती । - 
कुसुम ठाकुर -

Thursday, September 17, 2009

वामन वृक्ष


" वामन वृक्ष "

वामन वृक्ष करे पुकार ,
झेल रहा मनुज की मार ।
वरना मैं भी तो सक्षम ,
रहता वन मे स्वछंद ।

देख मनुज जब खुश होते ,
मेरी इस कद काठी को ।
कुढ़कर मैं रह जाता चुप ,
किस्मत मेरी है अभिशप्त ।

बेलों को तो मिले सहारा ,
पेडों को मिले नील गगन ।
पर हमारी किस्मत ऐसी ,
तारों से हमें रखें जकड़ ।

बढ़ना चाहें हम भी ऐसे ,
जैसे बेल और पेड़ बढ़ें ।
पर बदा किस्मत में मेरे ,
मिले हमें वामन का रूप ।

फल भी छोटा फूल भी छोटा ,
देख मनुज पर खुश होवें ।
पर हमारी अंतरात्मा की,
आह अगर वे देख सकें ।

चाहें हम भी रहना स्वछन्द ,
लगे हमें यह पिंजरे सा ।
हम भी तो प्रकृति की रचना ,
करे मनुज क्यों अत्याचार ।।


- कुसुम ठाकुर -



Wednesday, September 16, 2009

अगर न होते तुम जीवन में

"अगर न होते तुम जीवन में "

अगर न होते तुम जीवन में
मैं कैसे गीत सुनाती
अपनी भावनाओं को कैसे
लयबद्ध मैं कर पाती

मेरी रचना मेरे भाव
मेरे लय और मेरे साज
सबकी तान तुम्हीं ने थामा
मैं तो हूँ एक जरिया मात्र

आज जहाँ हूँ उसकी नींव
डाला तुमने बन दस्तूर
और उस इमारत के
हर श्रृंगार तुम्हीं हो

सृजनहार तुम्हीं हो
अलंकार तुम्हीं हो
प्रशंसक तुम्हीं हो
आलोचक भी तुम्हीं हो

- कुसुम ठाकुर -

Tuesday, September 15, 2009

मेरे भाव मेरी अभिव्यक्ति

मेरे भाव मेरी अभिव्यक्ति 
 
मेरे भाव कुछ भी हों , 
पर अभिव्यक्त मैं, न कर पाती । 
ऐसा क्यों होता मेरे साथ , 
यह समझ न पाऊं मैं। 
 भाव तो होते मेरे नेक , 
पर अभिव्यक्ति में ही दोष । 
अब मैं कैसे समझाऊँ , 
जो हो उनको यकीन । 
 मैं तो सोच समझकर बोलूँ , 
जो न लगे अप्रिय उन्हें । 
पर त्रुटि तो रह ही जाती , 
मैं भी मानूँ , हूँ मैं इंसान ।
 मेरे अंतर्मन की भाषा , 
समझ न पाए, यह मेरा कसूर । 
मैं कैसे उन्हें कष्ट पहुँचाऊँ , 
जिनपर मैं करूँ सदा यकीन।
 -कुसुम ठाकुर -

Monday, September 14, 2009

My Visit To Standford ( From My USA Trip 2008 )






Fremont

I went to visit the prestigious Stanford University with Vickie on 28 June. It is recognized as world's one of the leading research and teaching institutions, located in the heart of silicon valley, Palo Alto,California. It was established in 1891 by the Governor of California, Leland Stanford and his wife Jane Stanford. It is named in honour of their only child Leland Stanford Junior,who died of typhoid just before his 16th birthday.

Stanford University owns 8,183 acres(32km)of land. The main campus is bounded by EL Camino Real, Stanford Avenue, Junipero Serra Boulevard and Sand Hill Road in the northwest part of the Santa Clara Valley on the Sanfrancisco Peninsula.All the buildings of the university has red roofs and the campus is very big and beautiful. As you enter the gate you can see the mile long beautiful palm drive, palm tree-lined entrance to campus, connects Stanford with the neighbouring town of Palo Alto. We went straight through the palm drive and after parking the first thing we noticed was, a beautiful garden full of flowers and the logo of Stanford was made in the middle by flowers. Now from there we went to the Main Quaid, it has university's first buildings, constructed between 1887-1891. As we entered the Main Quaid, we saw a large number of outdoor art installations throughout the campus of the university.Bronze statue of Auguste Rodin are scatterd throughout the campus. The first one I saw was Burghers of Colois.It is the attraction for the visitors, taking pictures with the statues there. We also took some pictures there with the statues.

After spending some time with the statues and having some pictures, we saw the Memorial Church, which was behind the Main Quad. Here also we had our photo session and now we went to see the famous Hoover Tower.It is visible throughout the surrounding area, serves as a landmark of Stanford to faculty, students, alumni and the local community.It is named after US President Herbert Hoover.Here also we had some pictures, because all the buildings looks so beautiful that you need some memory that you visited such a nice place.Now it was time to leave but I will never forget that I had to take a photograph of Ami, Anand and Vickie four times, because Vickie thought that I was not taking the photo properly and to make sure that photo was taken properly I had to take it four times.We returned to Anand and Ami's house had a nice dinner and came back to Fremont.

Friday, September 11, 2009

Half Moon Bay(From My USA Trip 2008)

16 th June 2008 Fremont California

A very nice and sunny weather in Fremont . The sky looks really blue and clear . I use to hear that weather of California is the best. Now I can also say , its the ideal weather to stay.Today Vickie had planed to take me to Half Moon Bay and we could make it at 1 p:m because it was Sunday and on Sundays usually people are very busy . It was said that after a weeks work people get weekend so that they can have rest , but now you can say that after a weeks work people are off from their office work but not from work. They have plenty of work. Two days are not sufficient for their household work, so they are more busy on Sundays than working days, you can say on weekend. Forget about rest, only a few people are lucky enough and they enjoy weekend. Yes, I was telling that at 1 p:m we could start for Half Moon Bay. Its not very far from Fremont but takes about half an hour to reach there. Its a nice beach but when we came out of our car it was so cold and both of us had come in our summer dress only. Generally Vickie use to tell me to take jacket whenever we go out, but he himself was not knowing that the place will be so cold. People were enjoying there, lots of people were preparing for their camp. The entire camp area was full. Any way we stayed there for some time but the cold was not bearable and we could not stay for long time there. We saw stalls of fresh fruits and I took some cherry and we returned back home. Now I learned a lesson that always take a jacket or sweater with you whenever you go out in California.

Monday, September 7, 2009

मेरी यादें मेरे भाव

मेरी यादें मेरे भाव

यादों और संस्मरणों को ,
भावों में व्यक्त करूँ कैसे ?
यादों को गीतों में पिरो दूँ ,
वह गीत सुनाऊँ किसको ?
भावों की उन पंखुडियों को ,
मैं अर्पण करूँ किसको ?
यादों से क्या मिले सुकून ,
यह प्रश्न मैं पूछूँ किससे ?
भाव तो मुझे लगे स्वभाविक ,
पर प्रर्दशित करूँ कैसे ?
यादों को सहेज ध्यान में ,
भाव कुसुम त्यागूँ कैसे ?

-कुसुम ठाकुर -

Saturday, September 5, 2009

शिक्षक दिवस

आज 5 सितम्बर "शिक्षक दिवस " के अवसर पर सभी शिक्षकों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ ।


"शिक्षक दिवस" वह दिन है जिसका अनुभव मैंने एक विद्यार्थी के रूप में भी किया है एवम शिक्षक रहकर भी.  आज भी मैं बच्चों के उस प्यार को नहीं भूल पाती जो मुझे एक शिक्षिका के रूप में मिला। यही वह दिन है जब मुझे लगता मैं बेकार में स्कूल छोड़ी। प्रत्येक वर्ष हमारे स्कूल में शिक्षक दिवस मनाई जाती। बच्चे बड़े ही मन से हमारे लिए कार्यक्रम तैयार करते और हर वर्ष मैं अपने कक्षा के बच्चों को हिदायत देती कि किसी को कोई उपहार नहीं लाना है, न मेरे लिए न ही किसी और शिक्षक या शिक्षिका के लिए । वे बड़े ही मायूस होकर पूछते "क्यूँ " और मैं उन्हें समझाते हुए कहती बस अपने बागीचे से "एक फूल" ले आना जिसके घर में हो । जिसके घर न हो वे बाज़ार से नहीं लायेंगे। पर मैं उन बच्चों के स्नेह को देखकर दंग रह जाती । सुबह सुबह ज्यों ही मैं अपनी कक्षा पहुँचती एक एक कर बच्चे मेरे सामने आते और अपने हाथों से बनाये हुए कार्ड और अपने बगीचे से लाये हुए फूल मुझे देते। उनके स्नेह को देख मैं तो भाव विभोर हो जाती । जो बच्चे फूल नहीं भी लाते वे भी औरों के साथ आकर मुझे शिक्षक दिवस की बधाई देते । वे बच्चे मेरी भावनाओं की जो क़द्र करते और सम्मान देते वह मेरे लिए अनमोल उपहार होता । उस कार्ड में वे अपनी भावनाओं को व्यक्त करते जिसे पढ़ मैं आह्लादित हो जाती। आज भी मैं उनमे से कुछ कार्ड रखी हुई हूँ जो बच्चों ने मुझे दिया था।

 आज शिक्षक दिवस के अवसर पर मैं उन सभी बच्चों को , हार्दिक शुभकामनाएँ एवं आर्शीवाद देती हूँ।