Thursday, September 17, 2009

वामन वृक्ष


" वामन वृक्ष "

वामन वृक्ष करे पुकार ,
झेल रहा मनुज की मार ।
वरना मैं भी तो सक्षम ,
रहता वन मे स्वछंद ।

देख मनुज जब खुश होते ,
मेरी इस कद काठी को ।
कुढ़कर मैं रह जाता चुप ,
किस्मत मेरी है अभिशप्त ।

बेलों को तो मिले सहारा ,
पेडों को मिले नील गगन ।
पर हमारी किस्मत ऐसी ,
तारों से हमें रखें जकड़ ।

बढ़ना चाहें हम भी ऐसे ,
जैसे बेल और पेड़ बढ़ें ।
पर बदा किस्मत में मेरे ,
मिले हमें वामन का रूप ।

फल भी छोटा फूल भी छोटा ,
देख मनुज पर खुश होवें ।
पर हमारी अंतरात्मा की,
आह अगर वे देख सकें ।

चाहें हम भी रहना स्वछन्द ,
लगे हमें यह पिंजरे सा ।
हम भी तो प्रकृति की रचना ,
करे मनुज क्यों अत्याचार ।।


- कुसुम ठाकुर -



10 comments:

  1. देख मनुज जब खुश होते ,
    मेरी इस कद काठी को ।


    atyant sundar !

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  2. चाहें हम भी रहना स्वछन्द ,
    लगे हमें यह पिंजरे सा ।
    हम भी तो प्रकृति की रचना ,
    मनुज क्यों करे अत्याचार ।।


    सुन्दर अभिव्यक्ति प्रकृति के साथ जोड़ती हुई

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  3. आपनी कविता के मार्फत से जो बात कहने की कोशिश की है वह अत्यंत ही सम्वेदनशील है ....जो मन को छू गयी.......

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  4. बिष्णु के वामन अवतार और बोन्साई की उससे तुलना - एक मौलिक सोच की संवेदनशील रचना बहुत पसन्द आयी कुसुम जी। यह बोन्साई की ही कथा नहीं, अपितु आजकल साधनहीन मानव भी तो बोन्साई बनकर ही रह गया है। सुन्दर भाव - बधाई।

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  5. बहुत ही समवेदनशील कविता और उसकी शानदार प्रस्तुति. बधाई

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  6. " aapki gaherai bhari soch ko salam bahut hi sunder abhivyakti hai ..."

    ----- http://eksacchai.blogspot.com

    http://hindimasti4u.blogspot.com

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  7. बेलों को तो मिले सहारा ,
    पेडों को मिले नील गगन ।
    पर हमारी किस्मत ऐसी ,
    तारों से हमें रखें जकड़ ।

    बहुत सुन्दर कविता है।
    बधाई!

    एक निवेदन है-
    ब्लॉग का शीर्षक हिन्दी में कर दें।
    इसके लिए मेरी सहायता की आवशयकता हो तो
    अवश्य याद करें।

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  8. आप सबों को अपनी अपनी प्रतिक्रिया
    देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ।

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  9. शास्त्री जी आपके सुझाव के लिए बहुत बहुत धन्यवाद । पर इस ब्लॉग के शीर्षक से मेरा कुछ भावनात्मक लगाव है इसलिए इसे मैं नहीं बदल सकती ।
    दूसरा ब्लॉग मैं बनाऊँगी जिसका शीर्षक हिंदी में होगा और आपकी सलाह अवश्य लूँगी ।

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  10. प्रकृति से तादत्म करती रचना

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