"वे लम्हें "
वे लम्हें भूले नहीं जाते ,
वे वादे चाहूँ भी न भूलूँ ।
पर यह कैसी मजबूरी ,
चाहकर, पाऊँ भी न तुमको ।
खुली हुई आँखों में तुम हो ,
बंद आँखों में भी बसा लूँ ।
व्याकुल हो ढूँढूँ मैं जब जब ,
चाहकर पाऊँ भी न तुमको ।
नैनो की भाषा भी तुम हो ,
चाहत की परिभाषा भी यही पर ,
सोचूँ तो लगे सपना सा ,
चाहकर पाऊँ भी न तुमको ।
अंसुवन की धार भी तुम हो ,
अंजन और श्रृंगार तुम्ही हो ।
पर करूँ कितना भी जतन मैं ,
चाहकर पाऊँ भी न तुमको ।
-कुसुम ठाकुर -
वे लम्हें भूले नहीं जाते ,
वे वादे चाहूँ भी न भूलूँ ।
पर यह कैसी मजबूरी ,
चाहकर, पाऊँ भी न तुमको ।
खुली हुई आँखों में तुम हो ,
बंद आँखों में भी बसा लूँ ।
व्याकुल हो ढूँढूँ मैं जब जब ,
चाहकर पाऊँ भी न तुमको ।
नैनो की भाषा भी तुम हो ,
चाहत की परिभाषा भी यही पर ,
सोचूँ तो लगे सपना सा ,
चाहकर पाऊँ भी न तुमको ।
अंसुवन की धार भी तुम हो ,
अंजन और श्रृंगार तुम्ही हो ।
पर करूँ कितना भी जतन मैं ,
चाहकर पाऊँ भी न तुमको ।
-कुसुम ठाकुर -
virah vedna ko bakhubi darshati kavita
ReplyDeleteभाव बढ़िया है...
ReplyDeleteवे लम्हें भूली नहीं जातीं ....वे लम्हें भूले नहीं जाते....जैसी भटकनें खटकीं. देखियेगा. विचेदन मात्र है.
मूल भाव बहुत बेहतरीन हैं.
धन्यवाद भूलें बताने के लिए ....
ReplyDeleteउन लम्हो का जबाव नही है ......आपके भाव बहुत ही सुन्दर होते है जैसे प्रकृति होती है वैसी ही भाव से सनी होती है आपकी रचनाये ......अतिसुन्दर!!!!!!!!!
ReplyDeleteअंसुवन की धार भी तुम हो ,
ReplyDeleteअंजन और श्रृंगार भी तुम हो ।
पर करूँ कितना भी जतन मैं ,
चाहकर पाऊँ भी न तुमको ।
bahut sundar panktiya ahi,badhai
अंसुवन की धार भी तुम हो ,
ReplyDeleteअंजन और श्रृंगार भी तुम हो ।
पर करूँ कितना भी जतन मैं ,
चाहकर पाऊँ भी न तुमको ।
bahut sundar panktiya ahi,badhai
आपके इस विरहगीत ने हमें भावुक कर दिया..........
ReplyDeleteधन्यवाद!!! आप सबों का स्नेह देखकर मैं भी भावुक हो गयी हूँ .....
ReplyDeleteखुली हुई आँखों में तुम हो ,
ReplyDeleteबंद आँखों में भी बसा लूँ ।....
bahut khoob..
waise iska ulta jyada pasand hai mujhe..
बंद आँखों में तुम हो ,
खुली आँखों में भी बसा लूँ ।
aapko kaisa laga.. jaroor batana..
http://ambarishambuj.blogspot.com/
वे लम्हें भूले नहीं जाते ,
ReplyDeleteवे वादे चाहूँ भी न भूलूँ ।
पर यह कैसी मजबूरी ,
चाहकर, पाऊँ भी न तुमको ।
bahut sundar panktiyaan .
बहुत सुन्दर. जीवन सच में कुच्ह लमहों के इर्द गिर्द ही घूमता रह जाता है.
ReplyDeleteघुघूती बासूती
खुली हुई आँखों में तुम हो ,
ReplyDeleteबंद आँखों में भी बसा लूँ ।
व्याकुल हो ढूँढूँ मैं जब जब ,
चाहकर पाऊँ भी न तुमको ।.nice
" wah ! bahut hi bhavpurn aur behad hi rochak "
ReplyDelete----- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com