Saturday, September 19, 2009

मैं कैसे करूँ आराधना

"मैं कैसे करूँ आराधना "
 
मैं कैसे करूँ आराधना , 
कैसे मैं ध्यान लगाऊँ । 
द्वार तिहारे आकर मैया , 
मैं कैसे शीश झुकाऊँ । 
 मन में मेरे पाप का डेरा , 
मैं कैसे उसे निकालूं । 
न मैं जानूं आरती बंधन , 
मैं कैसे तुम्हें सुनाऊँ । 
 बीता जीवन अंहकार में , ल
याद न आयी तुम तब । 
अब तो डूब रही पतवार , 
कैसे मैं पार उतारूँ । 
 कर्म ही पूजा रटते रटते ,
 बीता जीवन सारा ।
 पर अब तो तन साथ न देवे ,
 अर्चना करूँ मैं कैसे । 
 मैं तो बस इतना ही जानूँ , 
तू सब की सुधि लेती । 
एक बार ध्यान जो धर ले
दौड़ी उस तक आती । - 
कुसुम ठाकुर -

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