"मैं कैसे करूँ आराधना "
मैं कैसे करूँ आराधना ,
कैसे मैं ध्यान लगाऊँ ।
द्वार तिहारे आकर मैया ,
मैं कैसे शीश झुकाऊँ ।
मन में मेरे पाप का डेरा ,
मैं कैसे उसे निकालूं ।
न मैं जानूं आरती बंधन ,
मैं कैसे तुम्हें सुनाऊँ ।
बीता जीवन अंहकार में , ल
याद न आयी तुम तब ।
अब तो डूब रही पतवार ,
कैसे मैं पार उतारूँ ।
कर्म ही पूजा रटते रटते ,
बीता जीवन सारा ।
पर अब तो तन साथ न देवे ,
अर्चना करूँ मैं कैसे ।
मैं तो बस इतना ही जानूँ ,
तू सब की सुधि लेती ।
एक बार ध्यान जो धर ले ,
दौड़ी उस तक आती ।
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कुसुम ठाकुर -
ॐ शांति.
ReplyDeleteसुंदर भावयुक्त रचना .. जय माता दी !!
ReplyDeletejai mata di
ReplyDeletebahut sunder prathna
jai mata di
ReplyDeletebahut sunder prathna