Monday, January 25, 2010

संघर्ष में ही जीवन

"संघर्ष में ही जीवन"


रस्ते चली मैं जिस पर, छोडूँ उसे मैं कैसे ?
गैरों से न हूँ परेशां, खुद पर सितम न कम हो ।।


धिक्कार है मनुज को, अधिकार न दिया जो ,
संघर्ष में ही जीवन, संताप भी न कम हो ।।


जीवन के इस सफ़र में, मिलते तो सेज दोनों ,
फूलों की सेज पाकर, काँटों की चुभन न कम हो ।।


हौसला कहूँ उसे या, जज्बा है क्या न जानूं ।
अभिसार जिंदगी का, मुस्कान से न कम हो ।।


कुसुम की कामना है, मनुज के ही काम आए ,
बागों और घरों की,शोभा भी न कम हो ।।

-कुसुम ठाकुर -

Monday, January 18, 2010

हँसी के तले शिकन जो मिले

" हँसी के तले शिकन जो मिले "

मैं हँसती तो हूँ पर कहूँ मैं किसे
इस हँसी के तले शिकन जो मिले

कहूँ किस तरह दर्द के सिलसिले
दिखाऊँ किसे दर्द हैं जो मिले

न अरमानों की हसरत है मुझे
न दीवानगी न उल्फत ही मिले

हौसला है मिला उस सफ़र के लिए
मैं करूँ बंदगी पर सिफर ही मिले

- कुसुम ठाकुर -

Tuesday, January 12, 2010

भावाकुल मन ढूँढ़े तुमको


(आज नरक निवारण चतुर्दशी के अवसर पर यह कविता उस व्यक्ति को समर्पित करती हूँ जो मेरे लिए प्रेरणा , मेरे गुरु तथा साथी सदा थे और रहेंगे । संयोगवश आज उनका भी जन्मदिन है। )

" भावाकुल मन ढूँढ़े तुमको "


काश, आज आपने शब्दों को ,
अर्पित कर पाती मैं तुमको ।
मेरे मन का सहज भाव फिर ,
नया राग दे जाता मुझको ।


भूलूँ मैं कैसे उन पल को ,
मुझे लगे जैसे वह कल हो ।
नित्य नए एक रूप में देखी ,
समझ न पाई पर मैं तुमको ।


सुख की यादें बंद नयनों में ,
क्लांत ह्रदय वे कर देती हैं ।
दुःख भी तो लगता है सपना ,
याद करुँ जो उन पल तुमको ।


क्या कला क्या जीवन रंग हो ,
मैंने तो बस सीखा कल को ।
लाऊं कहाँ मनोवांछित पल वो,
भावाकुल मन ढूंढें तुमको ।।

- कुसुम ठाकुर -




Wednesday, January 6, 2010

रंग मंच सा लगता मुझको


" रंग मंच सा लगता मुझको "

रंग मंच सा लगता मुझको
मैंने दुनिया को ना जानी ।

जीवन के इस रंग मंच पर
कलाकार अद्भुत देखी है
निर्देशन का पता नहीं है
होती है अभिनय मन मानी
मैंने दुनिया को ना जानी ।

दो अन्जाने मिल जाते हैं
मिलकर अभिनय कर जाते है
अभिनय करना एक कला है
कला नहीं तो है नादानी
मैंने दुनिया को ना जानी ।

मंच जहाँ भी मिल जाता है
जाकर वहाँ ही रम जाते हैं
नहीं खबर है पटाक्षेप का
लगती है दुनिया अन्जानी
मैंने दुनिया को ना जानी ।

- कुसुम ठाकुर -