Monday, January 25, 2010

संघर्ष में ही जीवन

"संघर्ष में ही जीवन"


रस्ते चली मैं जिस पर, छोडूँ उसे मैं कैसे ?
गैरों से न हूँ परेशां, खुद पर सितम न कम हो ।।


धिक्कार है मनुज को, अधिकार न दिया जो ,
संघर्ष में ही जीवन, संताप भी न कम हो ।।


जीवन के इस सफ़र में, मिलते तो सेज दोनों ,
फूलों की सेज पाकर, काँटों की चुभन न कम हो ।।


हौसला कहूँ उसे या, जज्बा है क्या न जानूं ।
अभिसार जिंदगी का, मुस्कान से न कम हो ।।


कुसुम की कामना है, मनुज के ही काम आए ,
बागों और घरों की,शोभा भी न कम हो ।।

-कुसुम ठाकुर -

12 comments:

  1. वाह बहुत खूब,
    सुन्दर कविता है.
    आपको बधाई

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  2. एक एक शब्द जीवंत हो कर बोल रहे हैं .... खुद-ब-खुद ....

    बहुत सुंदर रचना....

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  3. धिक्कार है मनुज को, अधिकार न दिया जो ,
    संघर्ष में ही जीवन, संताप भी न हो कम ।।
    मुझे भी लगता है गलती यहीं है - सच्ची रचना - आभार.

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  4. " her alfaz jeet leta hai dil bahut hi khubsurat rachana "

    धिक्कार है मनुज को, अधिकार न दिया जो ,
    संघर्ष में ही जीवन, संताप भी न हो कम ।।


    जीवन के इस सफ़र में, मिलते तो सेज दोनों ,
    फूलों की सेज पाकर, काँटों की चुभन न कम हो ।।

    ----- eksacchai { AAWAZ }

    http://eksacchai.blogspot.com

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  5. अभिसार जिंदगी का, मुस्कान से न कम हो
    बहुत अच्छी लाईन हैं
    मन से लिखी गयी लाईने हैं

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  6. पूरी कविता ही शानदार बन पड़ी है कुसुम जी...
    गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें....
    जय हिंद... जय बुंदेलखंड...

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  7. बहुत सुंदर गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाऎं

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  8. बहुत सुंदर लिखा है दी।
    "जीवन के इस सफ़र में, मिलते तो सेज दोनों ,
    फूलों की सेज पाकर, काँटों की चुभन न कम हो "

    बहुत खूब...और अंतिम पंक्तियों में "कुसुम" को बड़े अच्छे से इस्तेमाल किया है आपने।

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  9. हौसला कहूँ उसे या, जज्बा है क्या न जानूं ।
    अभिसार जिंदगी का, मुस्कान से न कम हो ।।
    कुसुम जी बहुत सुन्दर रचना है शुभकामनायें

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  10. आप सभी साथी ब्लोगरों को उत्साह वर्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !!

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  11. कुसुम की कामना है, मनुज के ही काम आए ,
    बागों और घरों की,शोभा भी न कम हो ।।
    kusum ji bahuthi nek vichaaron ko aapne kavita mein peeroya hai ..sadhuwad

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