" रंग मंच सा लगता मुझको "
रंग मंच सा लगता मुझको
मैंने दुनिया को ना जानी ।
जीवन के इस रंग मंच पर
कलाकार अद्भुत देखी है
निर्देशन का पता नहीं है
होती है अभिनय मन मानी
मैंने दुनिया को ना जानी ।
दो अन्जाने मिल जाते हैं
मिलकर अभिनय कर जाते है
अभिनय करना एक कला है
कला नहीं तो है नादानी
मैंने दुनिया को ना जानी ।
मंच जहाँ भी मिल जाता है
जाकर वहाँ ही रम जाते हैं
नहीं खबर है पटाक्षेप का
लगती है दुनिया अन्जानी
मैंने दुनिया को ना जानी ।
- कुसुम ठाकुर -
मंच जहाँ भी मिल जाते हैं
ReplyDeleteबस उसमे ही रम जाते हैं
पटाक्षेप का खबर नहीं जो
यह न है नादानी
दुनियाँ को मैं ने न जानी ।
सच कहा आपने । खूबसूरत रचना , बधाई
बहुत उम्दा बात कही!!
ReplyDeleteजीवन के इस रंग मंच पर
ReplyDeleteकलाकार अद्भुत देखी है
निर्देशन का पता नहीं है
अभिनय करे मन मानी
दुनिया को मैं ने न जानी ।
वाह। बहुत सुंदर अभिव्यक्ति। सटीक। समयोचित। सार्थक।
दुनिया को रंगमंच के अलग तरह के बिम्ब मे प्रस्तुत करती यह एक बेहतरीन कविता है ।
ReplyDeleteकुसुमजी आपने अपनी रंगमंच की दुनिया को इस कविता में उतार दिया है बधाई.
ReplyDeleteदुनिया रंगमंच ही तो है ...और हम सब कलाकार ...अपना पात्र ठीक से निभा ले बस ...!!
ReplyDeleteजिंदा रहना एक जंग है
ReplyDeleteदुनिया एक रंग मंच है
हम सब पात्र है नाटक के
खुब सुरत अभिव्यक्ति। आभार
नुतन वर्ष की शुभ कामनाएं
sshkt rachna .
ReplyDeletebadhai
दो अन्जाने मिल जाते हैं
ReplyDeleteमिलकर अभिनय कर जाते है
अभिनय करना एक कला है
कला नहीं तो है नादानी
मैंने दुनिया को न जानी ।
Sach kaha...eksaath rahkar bhee do log ek doojese anjaan rah jate hain!
aap ki kavita bahut achi lagi. aap ka likha har sabda dil ki gahraiyo ko chu jata hai.
ReplyDeletebehtreen rachna...
ReplyDeletesanjay bhaskar
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
उफ़्फ़्फ़...दीदी, बहुत सुंदर लिखा है आपने।
ReplyDelete"मंच जहाँ भी मिल जाते हैं
जाके उसमे रम जाते हैं
नहीं खबर है पटाक्षेप का
लगती है दुनिया अन्जानी "
बहुत खूब और ब्लौग का नया कलेवर भी खूब फ़ब रहा है। शीर्षक को तनिक बोल्ड में लिखा कीजिये...एक बेहतरीन रचना के लिये हृदय से बधाई दी!
मंच जहाँ भी मिल जाते हैं
ReplyDeleteजाके उसमे रम जाते हैं
नहीं खबर है पटाक्षेप का
लगती है दुनिया अन्जानी
मैंने दुनिया को न जानी ।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है। बधाई
बेहतरीन रचना के लिये हृदय से बधाई
ReplyDeleteआपकी रचना बेहद अद्भुत थी। फिर भी मैं यहाँ कुछ अटकता चला गया।
ReplyDeleteमैंने दुनिया को न जानी।
शायद
मैं दुनिया को न जानी
हैरत की बात है इतना कुछ जान कर भी कहती हैं की कुछ नहीं जानती .बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteमंच जहाँ भी मिल जाते हैं
ReplyDeleteजाके उसमे रम जाते हैं
नहीं खबर है पटाक्षेप का
लगती है दुनिया अन्जानी
मैंने दुनिया को न जानी ।
बहुत सुंदर रचना ......
द्वीपांतर परिवार की ओर से लोहड़ी एवं मकर सकांति पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं।
सभी चिट्ठाकार साथियों को उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !!
ReplyDeleteजीवन के इस रंग मंच पर
ReplyDeleteकलाकार अद्भुत देखी है
निर्देशन का पता नहीं है
होती है अभिनय मन मानी
मैंने दुनिया को ना जानी ।
...a small poem with a volumnous meaning within ... regards
Pratibhavant kavyitri ki
ReplyDeleteprtibhvant kavita...
Bas etna hi likh sakta hu
Regards,
bahut badiya ...rang -manch kajo prayopg aapne kiya ...adhbhut ...vilakshan
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