(आज नरक निवारण चतुर्दशी के अवसर पर यह कविता उस व्यक्ति को समर्पित करती हूँ जो मेरे लिए प्रेरणा , मेरे गुरु तथा साथी सदा थे और रहेंगे । संयोगवश आज उनका भी जन्मदिन है। )
" भावाकुल मन ढूँढ़े तुमको "
काश, आज आपने शब्दों को ,
अर्पित कर पाती मैं तुमको ।
मेरे मन का सहज भाव फिर ,
नया राग दे जाता मुझको ।
भूलूँ मैं कैसे उन पल को ,
मुझे लगे जैसे वह कल हो ।
नित्य नए एक रूप में देखी ,
समझ न पाई पर मैं तुमको ।
सुख की यादें बंद नयनों में ,
क्लांत ह्रदय वे कर देती हैं ।
दुःख भी तो लगता है सपना ,
याद करुँ जो उन पल तुमको ।
क्या कला क्या जीवन रंग हो ,
मैंने तो बस सीखा कल को ।
लाऊं कहाँ मनोवांछित पल वो,
भावाकुल मन ढूंढें तुमको ।।
- कुसुम ठाकुर -
बहुत सुन्दर,
ReplyDeleteव्याकुल भावों की सुन्दर प्रस्तुति.
बधाई
काश, आज आपने शब्दों को ,
ReplyDeleteअर्पित कर पाती मैं तुमको ।
मेरे मन के सहज भाव फिर ,
नया राग दे जाता मुझको ।
aap to bahut achhi kavita karti hain.meri anant shubkamnayen kusumji.
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteसुख की यादें बंद नयनों में ,
ReplyDeleteक्लांत ह्रदय वे कर देती हैं ।
दुःख भी तो लगता है सपना ,
याद करुँ जो उन पल तुमको ।
बहुत बहुत बधाई...
sundar bhavanao se saji...pyari kavita.
ReplyDeleteबहुत खूब , लाजवाब अभिव्यक्ति लगी , साथ ही आपका शब्दो को पिरोना भी बहुत भाया ।
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण कविता कुसुम जी। मन के तारों को स्पर्श करने वाली रचना। बहुत पसन्द आये आपके प्रस्तुत भाव। लेकिन आदत से मजबूर - पेश करता हूँ ये तात्कालिक पंक्तियाँ - जिसे आपकी रचना ने जन्म दिया है -
ReplyDeleteभावाकुल जिसके लिए मिलेंगे अपने आप।
दुख भी जब सपना लगे फिर कैसा संताप।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
मन को छू जाने वाला गीत, बधाई।
ReplyDelete--------
अपना ब्लॉग सबसे बढ़िया, बाकी चूल्हे-भाड़ में।
ब्लॉगिंग की ताकत को Science Reporter ने भी स्वीकारा।
भावाकुल मन ढूंढें तुमको, अच्छी लाईन है
ReplyDeleteरचना अच्छी लगी बधाई.
क्या कला क्या जीवन रंग हो ,
ReplyDeleteमैंने तो बस सीखा कल को ।
लाऊं कहाँ मनोवांछित पल वो,
भावाकुल मन ढूंढें तुमको ।।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
लाजवाब रचना
बधाई
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'श्रेष्ठ सृजन प्रतियोगिता'
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क्रियेटिव मंच
लाऊं कहाँ मनोवांछित पल वो,
ReplyDeleteभावाकुल मन ढूंढें तुमको ।।
sundar ati sundar bhabd bhaav or dhara pravah
सुख की यादें बंद नयनों में ,
ReplyDeleteक्लांत ह्रदय वे कर देती हैं ।
दुःख भी तो लगता है सपना ,
याद करुँ जो उन पल तुमको ।
वाह...अप्रतिम रचना...भावनाओं से ओत प्रोत...
नीरज
समझ सकता हूँ दीदी आपके मनोभाव को....उनपर तो हमारे पूरे मैथिली समाज को गर्व है।
ReplyDeleteउधर वो भी मुस्कुरा रहे होंगे गर्व से आपको देखकर...
मैं तो आप सबों का स्नेह देख अभिभूत हूँ . बहुत बहुत धन्यवाद !!
ReplyDeleteगौतम ,
मेरे मनोभावों को समझने के लिए ढेर सारा स्नेह!!
बहुत सुंदर भाव ..... आभार !
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