Tuesday, January 12, 2010

भावाकुल मन ढूँढ़े तुमको


(आज नरक निवारण चतुर्दशी के अवसर पर यह कविता उस व्यक्ति को समर्पित करती हूँ जो मेरे लिए प्रेरणा , मेरे गुरु तथा साथी सदा थे और रहेंगे । संयोगवश आज उनका भी जन्मदिन है। )

" भावाकुल मन ढूँढ़े तुमको "


काश, आज आपने शब्दों को ,
अर्पित कर पाती मैं तुमको ।
मेरे मन का सहज भाव फिर ,
नया राग दे जाता मुझको ।


भूलूँ मैं कैसे उन पल को ,
मुझे लगे जैसे वह कल हो ।
नित्य नए एक रूप में देखी ,
समझ न पाई पर मैं तुमको ।


सुख की यादें बंद नयनों में ,
क्लांत ह्रदय वे कर देती हैं ।
दुःख भी तो लगता है सपना ,
याद करुँ जो उन पल तुमको ।


क्या कला क्या जीवन रंग हो ,
मैंने तो बस सीखा कल को ।
लाऊं कहाँ मनोवांछित पल वो,
भावाकुल मन ढूंढें तुमको ।।

- कुसुम ठाकुर -




15 comments:

  1. बहुत सुन्दर,
    व्याकुल भावों की सुन्दर प्रस्तुति.
    बधाई

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  2. काश, आज आपने शब्दों को ,
    अर्पित कर पाती मैं तुमको ।
    मेरे मन के सहज भाव फिर ,
    नया राग दे जाता मुझको ।
    aap to bahut achhi kavita karti hain.meri anant shubkamnayen kusumji.

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  3. बहुत ही सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति ।

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  4. सुख की यादें बंद नयनों में ,
    क्लांत ह्रदय वे कर देती हैं ।
    दुःख भी तो लगता है सपना ,
    याद करुँ जो उन पल तुमको ।

    बहुत बहुत बधाई...

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  5. sundar bhavanao se saji...pyari kavita.

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  6. बहुत खूब , लाजवाब अभिव्यक्ति लगी , साथ ही आपका शब्दो को पिरोना भी बहुत भाया ।

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  7. बहुत भावपूर्ण कविता कुसुम जी। मन के तारों को स्पर्श करने वाली रचना। बहुत पसन्द आये आपके प्रस्तुत भाव। लेकिन आदत से मजबूर - पेश करता हूँ ये तात्कालिक पंक्तियाँ - जिसे आपकी रचना ने जन्म दिया है -

    भावाकुल जिसके लिए मिलेंगे अपने आप।
    दुख भी जब सपना लगे फिर कैसा संताप।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  8. भावाकुल मन ढूंढें तुमको, अच्छी लाईन है
    रचना अच्छी लगी बधाई.

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  9. क्या कला क्या जीवन रंग हो ,
    मैंने तो बस सीखा कल को ।
    लाऊं कहाँ मनोवांछित पल वो,
    भावाकुल मन ढूंढें तुमको ।।


    बहुत सुन्दर प्रस्तुति
    लाजवाब रचना
    बधाई


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  10. लाऊं कहाँ मनोवांछित पल वो,
    भावाकुल मन ढूंढें तुमको ।।

    sundar ati sundar bhabd bhaav or dhara pravah

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  11. सुख की यादें बंद नयनों में ,
    क्लांत ह्रदय वे कर देती हैं ।
    दुःख भी तो लगता है सपना ,
    याद करुँ जो उन पल तुमको ।

    वाह...अप्रतिम रचना...भावनाओं से ओत प्रोत...
    नीरज

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  12. समझ सकता हूँ दीदी आपके मनोभाव को....उनपर तो हमारे पूरे मैथिली समाज को गर्व है।

    उधर वो भी मुस्कुरा रहे होंगे गर्व से आपको देखकर...

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  13. मैं तो आप सबों का स्नेह देख अभिभूत हूँ . बहुत बहुत धन्यवाद !!
    गौतम ,
    मेरे मनोभावों को समझने के लिए ढेर सारा स्नेह!!

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  14. बहुत सुंदर भाव ..... आभार !

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