Saturday, December 31, 2016

साल नया फिर इक आया



 "साल नया फिर इक आया "


साल नया फिर इक आया
न कहता वह क्या-क्या लाया
आशा है भरपूर
कहीं यह भी न हो शूल



बंद पिटारे अब खुलने हैं
आस लगाए सब बैठे हैं
क्या होगा अब भी दूर
कहीं यह भी न हो शूल



देख जिसे सब खुश होते
सपने भी सब सच लगते
अब हो गए हमसे दूर
कहीं यह भी न हो शूल



सहें सभी सहमी सी बाजी
हूँ राजा क्या करेगा क़ाज़ी
चाहें, जनता न हो दूर
कहीं यह भी न हो शूल



अहंकार- न डरूं किसी से
दूजे का अपराध दिखा
क्या घटा कभी है कसूर
कहीं यह भी न हो शूल



सच की परिभाषा ही झूठी
घड़े फूटे जब झूठ औ सच की
कुसुम को है न कबूल
कहीं यह भी न हो शूल



नए वर्ष से आस जगाकर
भूल गए कुछ नया बताकर
कुर्सी ज्यों होगी दूर
कहीं यह भी न हो शूल



- कुसुम ठाकुर-

Friday, May 27, 2016

वामन वृक्ष



" वामन वृक्ष "

वामन वृक्ष करे पुकार ,
झेल रहा मनुज की मार ।
वरना मैं भी तो सक्षम ,
रहता वन मे स्वछंद ।

देख मनुज जब खुश होते ,
मेरी इस कद काठी को ।
कुढ़कर मैं रह जाता चुप ,
किस्मत मेरी है अभिशप्त ।

बेलों को तो मिले सहारा ,
पेडों को मिले नील गगन ।
पर हमारी किस्मत ऐसी ,
तारों से हमें रखें जकड़ ।

बढ़ना चाहें हम भी ऐसे ,
जैसे बेल और पेड़ बढ़ें ।
पर बदा किस्मत में मेरे ,
मिले हमें वामन का रूप ।

फल भी छोटा फूल भी छोटा ,
देख मनुज पर खुश होवें ।
पर हमारी अंतरात्मा की,
आह अगर वे देख सकें ।

चाहें हम भी रहना स्वछन्द ,
लगे हमें यह पिंजरे सा ।
हम भी तो प्रकृति की रचना ,
करे मनुज क्यों अत्याचार ।।

- कुसुम ठाकुर -

Friday, April 15, 2016

सावन आज बहुत तड़पाया

"सावन आज बहुत तड़पाया"

फिर बदरा ने याद दिलाया
पिया मिलन की आस जगाया

तड़पाती है विरह वेदना
सोये दिल की प्यास बढ़ाया

कट पाये क्या सफ़र अकेला
बस जीने की राह दिखाया

पतझड़ बीता और बसंत भी
सावन आज बहुत तड़पाया

आदत काँटों में जीने की
जहाँ कुसुम हरदम मुस्काया

-कुसुम ठाकुर- 

Friday, January 15, 2016

झलक दिखाने आ जाओ

'झलक दिखाने आ जाओ'

पलभर को कहीं गफलत ही सही, चेहरा तो दिखाने आ जाओ
तुम बुझे हुए नयनों के इन पलकों में समाने आ जाओ

प्रिय रुठे क्यों हो तुम अब तक बोलो कैसी है मजबूरी
ये  बेचैनी मैं कासे कहूँ एहसास जगाने आ जाओ

हो दूर मगर तुम जुदा नहीं आंसूं का साथ हुआ अपना
तन्हाई संग-संग रहती है पल भर को सताने आ जाओ

इस पार हैं हम उस पार हो तुम फिर मिलना कैसे हो संभव
सपनों में यकीं है मुझको तुम इक झलक दिखाने आ जाओ

दिन भर तो प्रतीक्षा कुसुम करे फिर शाम ढले वो मुरझाए
भंवरों की गुंजन यही कहे सपनों को सजाने आ जाओ

-कुसुम ठाकर-

Monday, January 11, 2016

वह रात मुझे डराती है

"वह रात मुझे डराती है "

वह रात मुझे डराती है 
जब याद तुम्हारी आती है 

दुःख की बातें याद नहीं
सुख सोच बहुत तडपाती है

व्याकुल हो जब भी ढूढूँ मैं
लगता मुझे चिढाती है

जीवन हो जीने की कला
यह सोच मुझे भरमाती है

साथी मुझसे छूटा जबसे
सपनो में सहलाती है

-कुसुम ठाकुर-