Wednesday, May 9, 2012

धोखा सगा दिया


"धोखा सगा दिया"

कसूर था क्या मेरा, फिर क्यूँ  सजा दिया
सोई थी आस क्यों फिर, उसको जगा दिया 

कहने को कुछ न था, सोहबत नसीब थी 
जब साथ ढूँढती हूँ तनहा बना दिया 

जो ढूँढती निगाहें, उजड़ा हुआ चमन है
सूखा हुआ गुलाब जैसे, मुझको चिढ़ा दिया 

चाहत किसे कहें हम, समझी नही थी तब 
चाहत जगी तो यारों, किस्मत दगा दिया 

मझधार में कुसुम है, पतवार थामकर 
अब जाऊँगी किधर को , धोखा सगा दिया

- कुसुम ठाकुर- 



11 comments:

  1. धोखा सुमन को अक्सर मिलता रहा सगा से
    लेकिन गज़ल कुसुम की दिल का पता दिया

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    http://www.manoramsuman.blogspot.com
    http://meraayeena.blogspot.com/
    http://maithilbhooshan.blogspot.com/

    ReplyDelete
  2. कल 012/05/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .

    धन्यवाद!

    ReplyDelete
  3. बिल्‍कुल स्‍वाभाविक अभिव्‍यक्ति ..

    धोखा तो सगे ही देते हैं ..

    गैरों की कहां चल पाती है ??

    ReplyDelete
  4. कुसुम बेटी
    आशीर्वाद
    बहुत भावपूर्ण


    चाहत किसे कहें हम, समझी नही थी तब

    चाहत जगी तो यारों, किस्मत दगा दिया

    ReplyDelete
  5. बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

    ReplyDelete
  6. जो ढूँढती निगाहें, उजड़ा हुआ चमन है
    सूखा हुआ गुलाब जैसे, मुझको चिढ़ा दिया

    चाहत किसे कहें हम, समझी नही थी तब
    चाहत जगी तो यारों, किस्मत दगा दिया

    मझधार में कुसुम है, पतवार थामकर
    अब जाऊँगी किधर को , धोखा सगा दिया।
    अनुपम भाव संयोजन से सजी यथार्थ का आईना दिखती सार्थक प्रस्तुति.....

    ReplyDelete