सोई थी आस क्यों फिर, उसको जगा दिया
कहने को कुछ न था, सोहबत नसीब थी
जब साथ ढूँढती हूँ तनहा बना दिया
जो ढूँढती निगाहें, उजड़ा हुआ चमन है
सूखा हुआ गुलाब जैसे, मुझको चिढ़ा दिया
चाहत किसे कहें हम, समझी नही थी तब
चाहत जगी तो यारों, किस्मत दगा दिया
मझधार में कुसुम है, पतवार थामकर
अब जाऊँगी किधर को , धोखा सगा दिया
- कुसुम ठाकुर-
बहुत बढ़िया रचना
ReplyDeleteजातिवादी के दंश ने डसा एक लाचार गरीब परिवार को : फेसबुक मुहीम बनी मददगार
bahut achchi ghazal kusum ji
ReplyDeleteधोखा सुमन को अक्सर मिलता रहा सगा से
ReplyDeleteलेकिन गज़ल कुसुम की दिल का पता दिया
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
http://www.manoramsuman.blogspot.com
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सुंदर रचना !
ReplyDeleteकल 012/05/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
बिल्कुल स्वाभाविक अभिव्यक्ति ..
ReplyDeleteधोखा तो सगे ही देते हैं ..
गैरों की कहां चल पाती है ??
कुसुम बेटी
ReplyDeleteआशीर्वाद
बहुत भावपूर्ण
चाहत किसे कहें हम, समझी नही थी तब
चाहत जगी तो यारों, किस्मत दगा दिया
बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
sundar kriti
ReplyDeletenice ghazal
ReplyDeleteजो ढूँढती निगाहें, उजड़ा हुआ चमन है
ReplyDeleteसूखा हुआ गुलाब जैसे, मुझको चिढ़ा दिया
चाहत किसे कहें हम, समझी नही थी तब
चाहत जगी तो यारों, किस्मत दगा दिया
मझधार में कुसुम है, पतवार थामकर
अब जाऊँगी किधर को , धोखा सगा दिया।
अनुपम भाव संयोजन से सजी यथार्थ का आईना दिखती सार्थक प्रस्तुति.....