Tuesday, April 17, 2012

वक्त भी कब वक्त देता


"वक्त भी कब वक्त देता" 

आज कहने को बहुत, जो अश्क में ही बह गए 
अपनी खुशियाँ कह न पाऊँ, उलझनों में रह गए  

गम को सींचें क्यों भला, जब दूर थीं खुशियाँ खड़ीं 
वक्त तो अब है मेरा जो, सारे गम को सह गए 

वक्त भी कब वक्त देता, मात दो उस वक्त को 
तिश्नगी ऐसी कि अरमां, वक्त के संग ढह गए  

डूबना हो याद में या फिर किनारे बैठकर 
स्निग्ध-सी मुस्कान में ही भाव सारे कह गए

इक समर्पण प्यार है, या खेल फिर शह मात का 
दूर ये न हो कुसुम से, जैसे कह कर वह गए

-कुसुम ठाकुर- 
  



शब्दार्थ :
तिशनगी - अभिलाषा, इच्छा, प्यास , तृष्णा 

8 comments:

  1. dil ke arma aansuoen me bah gaye
    ham bafa karke bhee tahha rah gay...
    दूर ये न हो कुसुम से, जैसे कह कर वह गए
    lekin chaliye aap tanha to nahi rahe..behtarin..sadar badhayee aaur amantran ke sath

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  2. शब्द के संग भाव सुन्दर, बन पडी अच्छी ग़ज़ल
    कह दिया सब कुछ कुसुम ने और सुमन जी बह गए
    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    http://maithilbhooshan.blogspot.com/
    http://www.manoramsuman.blogspot.com/
    http://meraayeena.blogspot.com/

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  3. वक्त भी कब वक्त देता, मात दो उस वक्त को
    तिश्नगी ऐसी कि अरमां, वक्त के संग ढह गए
    तभी जीने का मज़ा हैं :)

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  4. गम को सींचें क्यों भला, जब दूर थीं खुशियाँ खड़ीं
    वक्त तो अब है मेरा जो, सारे गम को सह गए

    बहुत ही ताज़गीपूर्ण रचना बनी हुई है...बधाई

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  5. कुसुम बेटी
    आशीर्वाद
    गम को सींचें क्यों भला, जब दूर थीं खुशियाँ खड़ीं
    वक्त तो अब है मेरा जो, सारे गम को सह गए

    लाजवाब गजल

    वक्त ने किया क्या हंसी सितम
    जिंदगी में मिले तम ही तम

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  6. सुन्दर बहुत सुंदर रचना

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