"सदा मीत सँग भोर"
जीवन जीने की कला मिला तुम्ही से मीत
लगता है इस मोड़ पर बढ़ा और भी प्रीत
गहरे होते भाव जितने होते उतने ही गंभीर
बिना शब्द ही कह गए यह नैनो की तासीर
ह्रदय सदा ही ढूँढता मिलन हुआ संयोग
कहने को तो है बहुत पर कैसे सहूँ वियोग
स्त्रोत प्रेरणा का मिला कहूं न सृजनहार
दिशा दिखाया आपने हुआ यही उपकार
मन का दर्पण खोलकर हुए जो भाव विभोर
कुसुम कामना सँग लिए सदा मीत सँग भोर
-कुसुम ठाकुर-
जीवन जीने की कला मिला तुम्ही से मीत
लगता है इस मोड़ पर बढ़ा और भी प्रीत
गहरे होते भाव जितने होते उतने ही गंभीर
बिना शब्द ही कह गए यह नैनो की तासीर
ह्रदय सदा ही ढूँढता मिलन हुआ संयोग
कहने को तो है बहुत पर कैसे सहूँ वियोग
स्त्रोत प्रेरणा का मिला कहूं न सृजनहार
दिशा दिखाया आपने हुआ यही उपकार
मन का दर्पण खोलकर हुए जो भाव विभोर
कुसुम कामना सँग लिए सदा मीत सँग भोर
-कुसुम ठाकुर-
सुन्दर रचना!
ReplyDelete--
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को शूल।।
--
हिन्दी दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
स्त्रोत प्रेरणा का मिला कहूं न सृजनहार
ReplyDeleteदिशा दिखाया आपने हुआ यही उपकार
बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति………॥यही है जीवन सार्।
Beautiful...
ReplyDelete