Tuesday, July 5, 2011

आस है ऋतुराज से


"आस है ऋतुराज से"

आज रूठूँ किस तरह जब पूछने वाला नहीं 
दिल के कोने में छिपा गम ढूँढने वाला नहीं

ढूँढती है ये निगाहें हर तरफ मुमकिन अगर
कैसे कम हो दर्द दिल का बाँटने वाला नहीं

रुख हवा का मोड़ दूँ है दिल में हलचल इस तरह
अनुभूतियाँ स्पर्श की पर चाहने वाला नहीं  

तान छेड़ूँ सप्त सुर में रागनी ऐसी कहाँ
संगीत की गहराईयों में डूबने वाला नहीं 

आस है ऋतुराज से नव कोपलें हों फिर कुसुम  
पत्तियाँ फिर से न सूखे सींचने वाला नहीं 

- कुसुम ठाकुर-

6 comments:

  1. खूबसूरत लेकिन मार्मिक प्रस्तुति

    ReplyDelete
  2. एक तरफ निराशा का भाव है तो आस भी है कहीं मन की गहराई में..मर्मस्पर्शी...

    ReplyDelete
  3. ऋतुराज बसंत की आस अति सुन्दर भाव ...मार्मिक मन को स्पर्श करती आस निरास में डूबी प्रस्तुति.....

    ReplyDelete
  4. तान छेड़ूँ सप्त सुर में रागनी ऐसी कहाँ
    संगीत की गहराईयों में डूबने वाला नहीं
    सुंदर अतिसुन्दर यह तो सच्चाई है , वाह वाह

    ReplyDelete
  5. मन को छूती भावपूर्ण रचना |
    बधाई
    आशा

    ReplyDelete