"कर में हरसिंगार"
श्वेत केसरिया कोमल सुन्दर
हो तुम सौम्य प्रतीक
नम्र भाव को देख कर
भक्त हुए नत शीश
भक्त हुए नत शीश
तुमसे महके चारों दिशाएँ
हो भक्तों के भक्त
कष्ट भी उनके सोचते
गिरो भूमि यह रीति
देख तुम्हारी नम्रता
हुए भक्त विभोर
भूमि दोष देखे नहीं
देव चढ़ावें शीश
कद में छोटे हो मगर
सौरभ मन को भाए
सूचना आगमन का
फल होगा सुखदाय
तन्मय होकर चुन रही
चेहरे पर मुस्कान
शिव की करूँ आराधना
कर में हरसिंगार
-कुसुम ठाकुर-
एक सुन्दर भाव की रचना कुसुम जी - "हर श्रृंगार" की व्यथा को भी आपने मन दिया.
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
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सुन्दर अहसास
ReplyDeleteदेख तुम्हारी नम्रता
ReplyDeleteहुए भक्त विभोर
भूमि दोष देखे नहीं
देव चढ़ावें शीश
बहुत सुन्दर भाव ..नम्रता से बाकी दोष खत्म हो जाते हैं ..
देख तुम्हारी नम्रता
ReplyDeleteहुए भक्त विभोर
भूमि दोष देखे नहीं
देव चढ़ावें शीश
नम्रता से बड़ा कोई गुण नहीं है , सुंदर भाव लिए हुए रचना , बधाई
कविता अच्छी लगी। इसके भाव भी।
ReplyDeleteहरसिंगार पर बहुत ही भावप्रणव रचना प्रस्तुत की है आपने!
ReplyDeleteहारसिंगार जैसी ही मनोहारी रचना...बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteनीरज
kusumji
ReplyDeletephoolon ke mamle main bachpan se mera sabse chaheta paudhon me se ek...jeewan ke padav mein jahan thara harsingar lagaya..lekin sac mein kya koi manyata hai..aapne भूमि दोष देखे नहीं
देव चढ़ावें शीश
likha hai..yadi koi jaankari ho to dijiyega..badhaiyi aur apne blog pe nimantran ke sath
bahut sundar suman ji..
ReplyDeleteअनायास ही हरी सी कोमल दूब याद हो आई.. बेहद कोमल भाव लिए हुए रचना..
ReplyDeletebhumi dokh dekhe nhi....kusum apne nam se mujhe yunhi pyar hai, teri kavita ne bhawon ke nav unmesh khol diye......
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