Sunday, June 26, 2011

मौन तराना सीख लिया


"मौन तराना सीख लिया"

तिमिर से रिश्ता है मेरा तो उसमे जीना सीख लिया 
छूटे रिश्ते, तन्हाई के जहर को पीना सीख लिया 

यादें आतीं वो बसंत जो बरसों पहले छूटा 
दूर भले पर यादों में अब पास बुलाना सीख लिया 

मिलते हैं कुछ लोग मुझे वे भीड़ में तन्हा जीते हैं 
 मीत बनाकर तन्हाई को हाथ मिलाना सीख लिय़ा

 थिरक रही अब उन यादों में झूले मन सावन के
फ़िक्र करूँ क्या इस दुनिया की मौन तराना सीख लिया 

जब हुई जुदाई बगिया से कुछ कुसुम गए देवालय तक
कुछ को सुन्दर सी परियों ने जूड़े में सजाना सीख लिया 

- कुसुम ठाकुर- 

9 comments:

  1. @जब हुई जुदाई बगिया से कुछ कुसुम गए देवालय तक
    कुछ को सुन्दर सी परियों ने जुड़े में सजाना सीख लिया

    लाजवाब

    आभार

    ReplyDelete
  2. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (27-6-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

    ReplyDelete
  3. आपने बहुत सुन्दर शब्दों में अपनी बात कही है। शुभकामनायें।

    ReplyDelete
  4. बहुत सुन्दर ग़ज़ल रची है आपने तो!

    ReplyDelete
  5. bahut dino k baad fir ek pyari rachana parh kar santosh hua.

    ReplyDelete
  6. बहुत सौंदर भावाभिव्यक्ति।

    ReplyDelete
  7. है कुसुम तो माथे की शोभा देवालय हो या गजरा में
    हो साथ भले कुछ पल का सुमन खुशियों में नहाना सीख लिया.
    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    http://meraayeena.blogspot.com/
    http://maithilbhooshan.blogspot.com/

    ReplyDelete
  8. बस मीत बना तन्हाई को फिर हाथ मिलाना सीख लिय़ा
    बहुत ही भावपूर्ण रचना बधाई......

    ReplyDelete
  9. जब हुई जुदाई बगिया से कुछ कुसुम गए देवालय तक
    कुछ को सुन्दर सी परियों ने जूड़े में सजाना सीख लिया
    ....
    बहुत सार्थक सोच..सुन्दर भावपूर्ण गज़ल..

    ReplyDelete