"मौन तराना सीख लिया"
तिमिर से रिश्ता है मेरा तो उसमे जीना सीख लिया
छूटे रिश्ते, तन्हाई के जहर को पीना सीख लिया
यादें आतीं वो बसंत जो बरसों पहले छूटा
दूर भले पर यादों में अब पास बुलाना सीख लिया
मिलते हैं कुछ लोग मुझे वे भीड़ में तन्हा जीते हैं
मीत बनाकर तन्हाई को हाथ मिलाना सीख लिय़ा
थिरक रही अब उन यादों में झूले मन सावन के
फ़िक्र करूँ क्या इस दुनिया की मौन तराना सीख लिया
जब हुई जुदाई बगिया से कुछ कुसुम गए देवालय तक
कुछ को सुन्दर सी परियों ने जूड़े में सजाना सीख लिया
- कुसुम ठाकुर-
@जब हुई जुदाई बगिया से कुछ कुसुम गए देवालय तक
ReplyDeleteकुछ को सुन्दर सी परियों ने जुड़े में सजाना सीख लिया
लाजवाब
आभार
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (27-6-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
आपने बहुत सुन्दर शब्दों में अपनी बात कही है। शुभकामनायें।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ग़ज़ल रची है आपने तो!
ReplyDeletebahut dino k baad fir ek pyari rachana parh kar santosh hua.
ReplyDeleteबहुत सौंदर भावाभिव्यक्ति।
ReplyDeleteहै कुसुम तो माथे की शोभा देवालय हो या गजरा में
ReplyDeleteहो साथ भले कुछ पल का सुमन खुशियों में नहाना सीख लिया.
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
http://meraayeena.blogspot.com/
http://maithilbhooshan.blogspot.com/
बस मीत बना तन्हाई को फिर हाथ मिलाना सीख लिय़ा
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण रचना बधाई......
जब हुई जुदाई बगिया से कुछ कुसुम गए देवालय तक
ReplyDeleteकुछ को सुन्दर सी परियों ने जूड़े में सजाना सीख लिया
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बहुत सार्थक सोच..सुन्दर भावपूर्ण गज़ल..