"तुम हो वही पलाश"
सौंदर्य के प्रतीक
तुम हो गए विलुप्त
देख तुम्हें मन खुश हो जाता
भूले बिसरे आस
तुम हो वही पलाश
वह होली
न भूली अबतक
पिया प्रेम ने रंग दी जिसमे
दमक उठा मेरा अंग रंग
तुम हो वही पलाश
खेतों के मेड़ पर
खाली परती जमीन पर
न लगता अब वह बाग़
खाली परती जमीन पर
न लगता अब वह बाग़
अब कैसे चुनूँ हुलास
तुम हो वही पलाश
वह बसंत
क्या फिर आया
क्या फिर आया
पर खुशबू ही भरमाया
न भूली कभी बहार
तुम हो वही पलाश
-कुसुम ठाकुर-
शब्द भाव संयोग से भरा हुआ एहसास
ReplyDeleteहै रचना में पीड भी खोजे कुसुम पलाश
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
http://meraayeena.blogspot.com/
http://maithilbhooshan.blogspot.com/
पलाश जितनी खूबसूरत कविता। बेशक लुप्त हो गया लेकिन सुगन्ध अभी भी शब्दों से महक रही है। शुभकामनायें।
ReplyDeletekhubsurat rachna
ReplyDeleteआपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDeleteआज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र . (अब तो चवन्नी बराबर भी नहीं हमारी हैसियत)
प्रिय कुशुम जी
ReplyDeleteमैंने आपका ब्लॉग पढ़ा हृदयस्पर्शी बातें लिखी हुई है | मैं फ़िलहाल झारखण्ड में हूँ और पलाश यहाँ की राजकीय पुष्प है इसकी गाथा को उजागर कर इस रत्नगर्भा राज्य को धन्य कर दिया, इसके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ | समय मिले तो मेरे ब्लॉग पे आइये
http://www.akashsingh307.blogspot.com/
हुत सुंदर रचना , पलाश की सुन्दरता का वर्णन , बधाई ......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना ..
ReplyDeleteachchhee rachna. badhaee.
ReplyDeletebahut hi sunder rachna
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