Tuesday, June 21, 2011

तुम हो वही पलाश

 

"तुम हो वही पलाश"

सौंदर्य के प्रतीक 
तुम हो गए विलुप्त 
देख तुम्हें मन खुश हो जाता 
भूले बिसरे आस
तुम हो वही पलाश 

वह होली 
न भूली अबतक 
पिया प्रेम ने रंग दी जिसमे
दमक उठा मेरा अंग रंग  
तुम हो वही पलाश

खेतों के मेड़ पर
  खाली परती जमीन पर
न लगता अब वह बाग़ 
अब कैसे  चुनूँ हुलास 
 तुम हो वही पलाश

वह बसंत
क्या फिर आया 
पर खुशबू ही भरमाया
न भूली कभी बहार 
तुम हो वही पलाश 

-कुसुम ठाकुर-

9 comments:

  1. शब्द भाव संयोग से भरा हुआ एहसास
    है रचना में पीड भी खोजे कुसुम पलाश

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    http://meraayeena.blogspot.com/
    http://maithilbhooshan.blogspot.com/

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  2. पलाश जितनी खूबसूरत कविता। बेशक लुप्त हो गया लेकिन सुगन्ध अभी भी शब्दों से महक रही है। शुभकामनायें।

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  3. प्रिय कुशुम जी
    मैंने आपका ब्लॉग पढ़ा हृदयस्पर्शी बातें लिखी हुई है | मैं फ़िलहाल झारखण्ड में हूँ और पलाश यहाँ की राजकीय पुष्प है इसकी गाथा को उजागर कर इस रत्नगर्भा राज्य को धन्य कर दिया, इसके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ | समय मिले तो मेरे ब्लॉग पे आइये
    http://www.akashsingh307.blogspot.com/

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  4. हुत सुंदर रचना , पलाश की सुन्दरता का वर्णन , बधाई ......

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