"सारे वादों को मैं भूल जाऊँ सही "
सारे वादों को मैं भूल जाऊँ सही
और कसमों को दिल से मिटाऊँ सही
एक तुम ही सदा रहनुमा थे मेरे
सारे मंज़र को दिल में उतारूँ सही
आइना भी मुझे अब लगे बदनुमा
चाहे लाख मैं खुद को सवारूँ सही
आहट भी मुझे अब लगे खौफ सा
सच्चाई गले से लगाऊँ सही
अब दरख्तों की छावों तले न सुकून
जो मैं बैठी हूँ कैसे बताऊँ सही
इल्तजा भी करुँ तो अब कैसे करूँ
कैसे ढूँढूँ जो मिल पाऊँ सही
इल्तजा भी करुँ तो अब कैसे करूँ
कैसे ढूँढूँ जो मिल पाऊँ सही
- कुसुम ठाकुर -
शब्दार्थ :
रहनुमा - पथ प्रदर्शक , मार्ग दर्शक
बदनुमा - कुरूप, भद्दा , जो देखने में अच्छा न हो
दरख्तों - पेड़
इल्तजा - प्रार्थना , विनय , निवेदन
आइना भी मुझे अब लगे बदनुमा
ReplyDeleteचाहे लाखों मैं खुद को सवारूँ सही
बढ़िया रचना!!!
एक तुम ही सदा रहनुमा थे मेरे
ReplyDeleteसारे मंज़र को दिल में उतारूँ सही
आइना भी मुझे अब लगे बदनुमा
चाहे लाखों मैं खुद को सवारूँ सही
बहुत अच्छी तरह जज्बातों को कहा है ...सुन्दर रचना
भावमयी कवि्ता है
ReplyDeleteआभार
कुसुम जी, बहुत ही गहराई से आई हुई इस रचना ने प्रभावित कर दिया | प्रत्येक शब्द की अनिवार्यता जहां सिद्ध होती है, वह कविता अनमोल ही होगी न...! हार्दिक बधाई |
ReplyDelete* * * * * * * * * *
आइना भी मुझे अब लगे बदनुमा
चाहे लाखों मैं खुद को सवारूँ सही
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अब दरख्तों की छावों तले न सुकून
जो मैं बैठी हूँ कैसे बताऊँ सही
दर्द से सराबोर एहसासों को सुंदर शब्दों में ढाला है.
ReplyDeleteआइना भी मुझे अब लगे बदनुमा
ReplyDeleteचाहे लाखों मैं खुद को सवारूँ सही
दिल को छू गई ये पंक्तियां।बहुत अच्छी भावाभिव्यक्ति।
BAHUT HI BHAVPURN KAVITA HAI KUSUM JI .
ReplyDeleteHAR PANKTI AAPKE DIL KE AHSAS KO SAKAR KARTI HAI . ZINDGI KE TALKH ANUBHAVON AUR JHOOTH PAR AADHARRIT DUNIYA KE NAKLI ROOP KO AAPNE KHARIZ KIYA HAI AUR SAHJATA KE KARIB PAHUNCHI HAIN. BESHAK AAPKI KAVITA ME BANAAV --THANAV KI ZAROORAT NAHIN HAI.UJHE LAGTA HAI AAP MUKT CHHAND ME LIKHENTO UN DABAVON SE MUKT HOKAR L8IKH SAKTI HAIN JO RADEEF -KAFIYE AUR BAHAR SE PAIDA HOTE HAIN . TAB SHAYAD AAP ADHIK SASHAKT ABHIVYAKTI SE SAMPANN HONGI AUR AAPKE SAMNE VICHARON AUR ANUBHAVON KA KHULA AAKASH HOGA.
FILHAAL MERI SHUBHKLAMNAYEN!
आइना भी मुझे अब लगे बदनुमा
ReplyDeleteचाहे लाखों मैं खुद को सवारूँ सही
अब दरख्तों की छावों तले न सुकून
जो मैं बैठी हूँ कैसे बताऊँ सही
बहुत खूब। अच्छी लगी रचना। शुभकामनायें
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 28 - 9 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
ReplyDeleteकृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
http://charchamanch.blogspot.com/
आइना भी मुझे अब लगे बदनुमा
ReplyDeleteचाहे लाखों मैं खुद को सवारूँ सही
बहुत सुंदर रचना
http://veenakesur.blogspot.com/
ग़ज़ल के भाव बहुत गहरे हैं । ...अति सुंदर।
ReplyDeletebohot khoob likha hai aapne.... apki soch ki tarah sundar...
ReplyDelete" इल्तजा भी करुँ तो अब कैसे करूँ
ReplyDeleteकैसे ढूँढूँ जो मिल पाऊँ सही "... बहुत उम्दा गज़ल्नुमा गीत!
एक तुम ही सदा रहनुमा थे मेरे
ReplyDeleteसारे मंज़र को दिल में उतारूँ सही
आइना भी मुझे अब लगे बदनुमा
चाहे लाख मैं खुद को सवारूँ सही
बहुत ही सुन्दर पंक्तियां, भावमय प्रस्तुति
,
चर्चामंच का आभार इस सुन्दर रचना को पढ़वाने के लिये ।
अच्छी रचना
ReplyDeleteyeh kavita sundar ghazal mey roopantarit ho sakti hai. adbhut sambhavana hai isame. badhai is kavita ke liye. dil se likha hai aapne..kya baat hai. samay nikalkar is kavita ko shero me badaliye. tab iska mazaa aur barh jayegaa. filhaal ye kavitaa dil ko chhone me safal hai.badhai. videsh mey bhi aap sahitya-seva mey lagi hai.
ReplyDeleteबहुत उम्दा!!
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
ReplyDeleteकाव्य प्रयोजन (भाग-१०), मार्क्सवादी चिंतन, मनोज कुमार की प्रस्तुति, राजभाषा हिन्दी पर, पधारें
Prem aur virah me yahee sab hota hai.
ReplyDeleteआइना भी मुझे अब लगे बदनुमा
चाहे लाखों मैं खुद को सवारूँ सही
Sunder parastuti.