Monday, September 20, 2010

चलने का बहाना ढूँढ लिया

"चलने का बहाना ढूँढ लिया"


चलने की हो ख्वाहिश साथ अगर 
चलने का बहाना ढूंढ लिया 

यूं तो रहते थे दिल के पास मगर 
तसरीह का बहाना ढूंढ लिया

मुड़कर भी जो देखूं मुमकिन नहीं
आरज़ू थी जो मुद्दत से ढूंढ लिया

तसव्वुर में बैठे थे शिद्दत सही 
खलिश को छुपाना ढूंढ लिया 

कहने को मुझे हर ख़ुशी है मिली 
हँसने का बहाना ढूंढ लिया 

- कुसुम ठाकुर -

5 comments:

  1. कहने को मुझे हर ख़ुशी है मिली
    हँसने का बहाना ढूंढ लिया

    सुन्दर भावपूर्ण कविता के लिए आभार

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  2. तसव्वुर में बैठे थे सिद्दत सही
    खलीश को छुपाना ढूंढ लिया पूरी रचना बहुत अच्छी लगी। लेकिन उपर वाले शेर मे खलीश की जगह खलिश होना चाहिये शायद टंकण त्रुटी हो।।
    हाँ जिस ने हंसने का बहाना ढूँढ लिया उसने जीना सीख लिया। दिल को छू गयी आपकी रचना। बधाई। धन्यवाद।

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  3. धन्यवाद निर्मला जी !!

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  4. कहने को मुझे हर ख़ुशी है मिली
    हँसने का बहाना ढूंढ लिया

    bahut achchhi rachana hai...

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  5. this is d best.... very meaningful & touching words...

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