Thursday, October 7, 2010

आराधना


"आराधना"



माँ कैसे करूँ आराधना ,
कैसे मैं ध्यान लगाऊँ ।
द्वार तिहारे आकर मैया ,
कैसे मैं शीश झुकाऊँ ।

मन में मेरे पाप का डेरा ,
माँ कैसे उसे निकालूं ।
न मैं जानूं आरती बंधन ,
माँ कैसे तुम्हें सुनाऊँ ।

बीता जीवन अंहकार में ,
याद न आयी तुम माँ ।
अब तो डूब रही पतवार ,
माँ कैसे पार उतारूँ ।

कर्म ही पूजा रटते रटते ,
माँ बीता जीवन सारा ।
पर तन भी अब साथ न देवे ,
माँ, अर्चना करूँ मैं कैसे ।

मैं तो बस इतना ही जानूँ ,
माँ, तू सब की सुधि लेती ।
एक बार ध्यान जो धर ले ,
माँ दौड़ी उस तक आती ।


- कुसुम ठाकुर -

4 comments:

  1. नवरात्रि की शुभकामनाये

    ReplyDelete
  2. समसामयिक और सुन्दर।

    सादर
    श्यामल सुमन
    www.manoramsuman.blogspot.com

    ReplyDelete
  3. सच में ही मां सब के मन की जानती हैं ।

    ReplyDelete