Monday, July 12, 2010

मन को समझाती रही !!

मन को समझाती रही "

यूँ गए कि  फिर न आए मन को समझाती रही 
बागबाँ बन अपने सूने मन को भरमाती रही 

शोख चंचल भावना हो पर फ़रह मुमकिन कहाँ 
सपनों मे थी कुछ संजोई सोच मुस्काती रही 

इब्तिदा जो प्यार की अलफ़ाज़ से मुमकिन नहीं  
दिल के हर एहसास का मैं गीत दुहराती रही 

चंद लम्हों का ये जीवन कुछ भला मैं भी करूँ  
कोशिशें हर पल करूँ और गम को बहलाती रही

आरज़ू थी कुछ कुसुम की अश्क शब्दों में ढले
काश मिल जाए वो खुशियाँ मन को झुठलाती रही 

- कुसुम ठाकुर -


शब्दार्थ :
फ़रह - प्रसन्नता, ख़ुशी 
इब्तिदा - शुरू , प्रारंभ 
अलफ़ाज़ - शब्द समूह 
अश्क - आंसू 



26 comments:

  1. शानदार पोस्ट

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  2. बहुत खूब, शानदार.
    इस बेहतरीन लेखनी के लिए बधाई

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  3. bahut khoob.

    पॉल बाबा का रहस्य आप भी जानें
    http://sudhirraghav.blogspot.com/

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  4. चंद लम्हों का यह जीवन कुछ भला मैं भी करूँ
    कोशिशें हर पल करूँ और गम को बहलाती रही
    बहुत सुन्दर.

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  5. बेहतरीन रचना!!

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  6. उर्दू के लफ़्ज़ों को बहुत खूबसूरती से दर्शा के एक बहुत मुकम्मल ग़ज़ल है ....

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  7. beautiful gazal.. जन्मदिन मुबारक हो मैम..

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  8. भाषा पर बहुत अच्छी पकड़
    रचना तो शानदार है ही
    बधाई आपको

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  9. जन्मदिन की भी शुभकामनाएं.

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  10. मन में उठने वाले भावो को जिस खूबसूरती से आपने शब्दों में पिरो कर कविता की रचना की है उसके लिए मेरी बधाई स्वीकार करे. बहुत ही सुन्दर रचना.

    ब्लागर साथियों को जन्मदिन की तहेदिल से बहुत-बहुत शुभकामनाये.

    पग-पग में फुल खिले,
    ख़ुशी आपको इतनी मिले,
    कभी न हो दुखो से सामना,
    यही है मेरी शुभकामना.

    कभी फुर्सत से मेरी गुफ्तगू में शामिल हो कर मेरा हौसला बढ़ाये. www.gooftgu.blogspot.com

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  11. उफ़ ………………
    सारे दर्द को शब्दो मे लुटाती रही
    पर उफ़ ना लबों पर लाती रही
    मै हंसती रही मुस्कुराती रही
    ज़िन्दगी को जश्न सा मनाती रही

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  12. कुसुम जी यह अहसास ही हमारी सबसे बड़ी पूंजी है। आपको जन्‍मदिन मुबारक हो और आने वाला महत्‍वपूर्ण दिन भी।

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  13. बहुत खूब, शानदार.
    इस बेहतरीन लेखनी के लिए बधाई

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  14. bahut sundar gazal

    janmdin ki bahut bahut badhai
    evam shubh-kaamnaayen

    http://sanjaykuamr.blogspot.com/

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  15. भावनायें शब्द के संग मन की बातें कह गयीं
    और कुसुम खुद का ही जीवन खुद से सुलझाती रही

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.

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  16. शब्‍दों में भावों को आपने लुटा दिया

    पर फिर भी एक खजाना पा लिया।

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  17. यही तो अमर प्रेम है ...
    यह कविता पढने के बाद आपकी इस कविता को और भी अच्छी तरह समझ पायी , जुड़ गयी ..

    यूँ गए कि फिर न आए मन को समझाती रही
    बागबाँ बन अपने सूने मन को भरमाती रही
    कोई नजरों से ही दूर हो तो फिर भी उसके आने की आस रहती है ...मगर जो दिल में बसा हो वह तो कभी दूर गया ही नहीं ..फिर मन सूना क्यों ...शायद सिर्फ कहना ही आसान है ...इस सूनेपन को सूना दिल ही समझ सकता है ...
    मन को भीतर तक छू गयी ...
    सुन्दर ...!

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  18. dil ko chhone vali kavitaa. badhai.

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  19. आरज़ू थी कुछ कुसुम की अश्क शब्दों में ढले
    काश मिल जाए वो खुशियाँ मन को झुठलाती रही

    वाह !!!!क्या कितना खुबसूरत है ये मन कभी अनजान कभी जाना पहचाना है ये मन

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  20. आप सभी मित्रों का स्नेह देख मैं भाव विभोर हो गयी......शब्दों में बयां करना नामुमकिन है !!

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  21. नीरज जी के ब्लॉग के बाद सीधे आपका ब्लॉग विसित किया....तो लगा की जैसे एक ही सिलसिले में आगे बढ़ आये हैं....ग़ज़ल अच्छी है ये दो शेर तो चुरा लेने का जी कर रहा है......

    इब्तिदा जो प्यार की अलफ़ाज़ से मुमकिन नहीं
    दिल के हर एहसास का मैं गीत दुहराती रही

    चंद लम्हों का ये जीवन कुछ भला मैं भी करूँ
    कोशिशें हर पल करूँ और गम को बहलाती रही

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  22. बहुत सुन्दर !
    घुघूती बासूती

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  23. चंद लम्हों का ये जीवन कुछ भला मैं भी करूँ
    कोशिशें हर पल करूँ और गम को बहलाती रही

    आरज़ू थी कुछ कुसुम की अश्क शब्दों में ढले
    काश मिल जाए वो खुशियाँ मन को झुठलाती रही


    waah .........dil khush ho gaya , kamaal ke sher hain

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  24. Read many of your blogs today and Didi I am seriously impressed.
    Wonderful - bahut kuch hai aapse sunne aur seekhne ko aisa mahsus hota hai aur jitna padhu aage aur padhne ka bhi man hota hai.

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