" मन को समझाती रही "
यूँ गए कि फिर न आए मन को समझाती रही
बागबाँ बन अपने सूने मन को भरमाती रही
शोख चंचल भावना हो पर फ़रह मुमकिन कहाँ
सपनों मे थी कुछ संजोई सोच मुस्काती रही
इब्तिदा जो प्यार की अलफ़ाज़ से मुमकिन नहीं
दिल के हर एहसास का मैं गीत दुहराती रही
चंद लम्हों का ये जीवन कुछ भला मैं भी करूँ
कोशिशें हर पल करूँ और गम को बहलाती रही
आरज़ू थी कुछ कुसुम की अश्क शब्दों में ढले
काश मिल जाए वो खुशियाँ मन को झुठलाती रही
आरज़ू थी कुछ कुसुम की अश्क शब्दों में ढले
काश मिल जाए वो खुशियाँ मन को झुठलाती रही
- कुसुम ठाकुर -
शब्दार्थ :
फ़रह - प्रसन्नता, ख़ुशी
इब्तिदा - शुरू , प्रारंभ
अलफ़ाज़ - शब्द समूह
अश्क - आंसू
शानदार पोस्ट
ReplyDeleteबहुत खूब, शानदार.
ReplyDeleteइस बेहतरीन लेखनी के लिए बधाई
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल
ReplyDeletebahut khoob.
ReplyDeleteपॉल बाबा का रहस्य आप भी जानें
http://sudhirraghav.blogspot.com/
चंद लम्हों का यह जीवन कुछ भला मैं भी करूँ
ReplyDeleteकोशिशें हर पल करूँ और गम को बहलाती रही
बहुत सुन्दर.
बेहतरीन रचना!!
ReplyDeleteउर्दू के लफ़्ज़ों को बहुत खूबसूरती से दर्शा के एक बहुत मुकम्मल ग़ज़ल है ....
ReplyDeletebeautiful gazal.. जन्मदिन मुबारक हो मैम..
ReplyDeleteभाषा पर बहुत अच्छी पकड़
ReplyDeleteरचना तो शानदार है ही
बधाई आपको
जन्मदिन की भी शुभकामनाएं.
ReplyDeleteमन में उठने वाले भावो को जिस खूबसूरती से आपने शब्दों में पिरो कर कविता की रचना की है उसके लिए मेरी बधाई स्वीकार करे. बहुत ही सुन्दर रचना.
ReplyDeleteब्लागर साथियों को जन्मदिन की तहेदिल से बहुत-बहुत शुभकामनाये.
पग-पग में फुल खिले,
ख़ुशी आपको इतनी मिले,
कभी न हो दुखो से सामना,
यही है मेरी शुभकामना.
कभी फुर्सत से मेरी गुफ्तगू में शामिल हो कर मेरा हौसला बढ़ाये. www.gooftgu.blogspot.com
उफ़ ………………
ReplyDeleteसारे दर्द को शब्दो मे लुटाती रही
पर उफ़ ना लबों पर लाती रही
मै हंसती रही मुस्कुराती रही
ज़िन्दगी को जश्न सा मनाती रही
कुसुम जी यह अहसास ही हमारी सबसे बड़ी पूंजी है। आपको जन्मदिन मुबारक हो और आने वाला महत्वपूर्ण दिन भी।
ReplyDeleteबहुत खूब, शानदार.
ReplyDeleteइस बेहतरीन लेखनी के लिए बधाई
bahut sundar gazal
ReplyDeletejanmdin ki bahut bahut badhai
evam shubh-kaamnaayen
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
भावनायें शब्द के संग मन की बातें कह गयीं
ReplyDeleteऔर कुसुम खुद का ही जीवन खुद से सुलझाती रही
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.
शब्दों में भावों को आपने लुटा दिया
ReplyDeleteपर फिर भी एक खजाना पा लिया।
यही तो अमर प्रेम है ...
ReplyDeleteयह कविता पढने के बाद आपकी इस कविता को और भी अच्छी तरह समझ पायी , जुड़ गयी ..
यूँ गए कि फिर न आए मन को समझाती रही
बागबाँ बन अपने सूने मन को भरमाती रही
कोई नजरों से ही दूर हो तो फिर भी उसके आने की आस रहती है ...मगर जो दिल में बसा हो वह तो कभी दूर गया ही नहीं ..फिर मन सूना क्यों ...शायद सिर्फ कहना ही आसान है ...इस सूनेपन को सूना दिल ही समझ सकता है ...
मन को भीतर तक छू गयी ...
सुन्दर ...!
dil ko chhone vali kavitaa. badhai.
ReplyDeleteआरज़ू थी कुछ कुसुम की अश्क शब्दों में ढले
ReplyDeleteकाश मिल जाए वो खुशियाँ मन को झुठलाती रही
वाह !!!!क्या कितना खुबसूरत है ये मन कभी अनजान कभी जाना पहचाना है ये मन
आप सभी मित्रों का स्नेह देख मैं भाव विभोर हो गयी......शब्दों में बयां करना नामुमकिन है !!
ReplyDeleteनीरज जी के ब्लॉग के बाद सीधे आपका ब्लॉग विसित किया....तो लगा की जैसे एक ही सिलसिले में आगे बढ़ आये हैं....ग़ज़ल अच्छी है ये दो शेर तो चुरा लेने का जी कर रहा है......
ReplyDeleteइब्तिदा जो प्यार की अलफ़ाज़ से मुमकिन नहीं
दिल के हर एहसास का मैं गीत दुहराती रही
चंद लम्हों का ये जीवन कुछ भला मैं भी करूँ
कोशिशें हर पल करूँ और गम को बहलाती रही
shandaar aur jaandaar... badhaee.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeleteघुघूती बासूती
चंद लम्हों का ये जीवन कुछ भला मैं भी करूँ
ReplyDeleteकोशिशें हर पल करूँ और गम को बहलाती रही
आरज़ू थी कुछ कुसुम की अश्क शब्दों में ढले
काश मिल जाए वो खुशियाँ मन को झुठलाती रही
waah .........dil khush ho gaya , kamaal ke sher hain
Read many of your blogs today and Didi I am seriously impressed.
ReplyDeleteWonderful - bahut kuch hai aapse sunne aur seekhne ko aisa mahsus hota hai aur jitna padhu aage aur padhne ka bhi man hota hai.