Saturday, June 26, 2010

चलने का नाम ही जीवन है .

 " चलने का नाम ही जीवन है "

गैरों से उम्मीद नहीं थी, अपनो ने जख्म दिया मुझको ।
चाहत कैसी तलबगार की, नेह सुधा न मिला मुझको ।।

सुख दुःख की आँख मिचौनी भी, शिरोधार्य किया मैंने ।
जीवन की हर सच्चाई से , साक्षात्कार न हुआ मुझको।।

चलने का नाम ही जीवन है, बस उसका अलख जगा बैठे ।
छोर निकट आया मंजिल की, ना आभास हुआ मुझको ।।

सिद्धांत कभी जो मन में बसा, उसे आज निभाना कठिन सही
क्या मार्ग उचित है, प्रगति भी हो, या यूँ ही भरमाया मुझको।।

है कुसुम नाम उत्सर्गों का , रहे उचित ध्यान सत्कर्मों से ।
कामना करूँ हर पल उससे , अभिमान कभी न छुए मन को ।।

- कुसुम ठाकुर -

9 comments:

  1. कामना करूँ हर पल उससे , अभिमान न कभी छुए मन को ।। यह पंक्ति सभी के लिये अनुकरणीय।

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  2. बहुत खूब, सुन्दर प्रस्तुति.
    आभार

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  3. है कुसुम नाम उत्सर्गों का , रहे उचित ध्यान सत्कर्मों से ।
    कामना करूँ हर पल उससे , अभिमान न कभी छुए मन को ।।


    aapki post buzz per her baar padha kerta tha , aaj blog pe aane ka saubhagay praapt hua.......


    bahut sundar bhav, umda lekhan...

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  4. आप सभी का आभार !!

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  5. kavitaa likhanaa sadhana-path par chlanaa hai. aap chal rahi hai. sahitya ki bagiyaa mey aap suvasit-kusum ki tarah mahke, yahi shubhkamanaa hai.

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  6. चलना ही जीवन है ...चलते जाना रे ...

    सुन्दर ..!

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  7. shabda chayan bahut achchha...........aage bhi aana hoga

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  8. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति....बहुत सार्थक अलख जगाया है

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