Monday, April 19, 2010

ये कैसी उल्फत जो हूँ दुखी मैं

" ये कैसी उल्फत जो हूँ दुखी मैं "  

तुम्हारी चाहत पर मर मिटी मैं
ये कैसी उल्फत जो हूँ दुखी मैं 

मुझे पता तब खता हुआ जब  
फिर कैसी रंजिश जो हूँ दुखी मैं 

मैं कैसे कह दूँ करूँ इबादत 
जफा मिले तो रहूँ दुखी मैं 

लगे तो रूह भी वफ़ा न जाने 
चाहूँ जो जन्नत रहूँ दुखी मैं 

ये कैसी चाहत ये कैसी उल्फत 
कुसुम ना समझे क्यों हूँ दुखी मैं

मिला है मुझको नेमत से कम क्या
फिर कैसी उलझन जो हूँ दुखी मैं  

- कुसुम ठाकुर -

15 comments:

  1. तुम्हारी चाहत पर मर मिटी मैं
    ये कैसी उल्फत जो हूँ दुखी मैं
    सुन्दर भाव संयोजन्………अच्छी रचना।

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  2. Bahut khub likha aapne.....
    मुझे पता तब खता हुआ जब फिर कैसी रंजिश जो हूँ दुखी मैं
    nice ma'am...

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  3. बहुत खूब लिखा है कुसुम जी आपने।

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  4. बहुत खूब ..........

    kunwar ji,

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  5. ये कैसी चाहत ये कैसी उल्फत
    कुसुम ना समझे क्यों हूँ दुखी मैं
    ...चाहत में अक्सर ऐसा हो जाता है....
    मनोभावों की सुन्दर प्रस्तुति ...

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  6. कुसुम ना समझे क्यों हूँ दुखी मैं '
    यही समझ में आ जाये तो बात ही क्या है.
    सुन्दर रचना

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  7. सुन्दर!
    घुघूती बासूती

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  8. बहुत खूब लिखा है कुसुम जी आपने।

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  9. लगे तो रूह भी वफ़ा न जाने
    चाहूँ जो जन्नत रहूँ दुखी मैं
    wah
    kusum
    bahut gehri soch
    satya bhi hai chahu jo jannat bhi naa paun mein ....wah

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  10. मैं कैसे कह दूँ करूँ इबादत जफा मिले तो रहूँ दुखी मैं
    लगे तो रूह भी वफ़ा न जाने चाहूँ जो जन्नत रहूँ दुखी मैं
    ये कैसी चाहत ये कैसी उल्फत कुसुम ना समझे क्यों हूँ दुखी मैं

    bahut hi shandar
    badhai

    ----eksacchai {AAWAZ }
    http://eksacchai.blogspot.com

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  11. bahut sundar rachna hai kusum ji.........

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  12. बहुत सुन्दर ...


    ************
    'पाखी की दुनिया में' पुरानी पुस्तकें रद्दी में नहीं बेचें, उनकी जरुरत है किसी को !

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  13. आप सभी को प्रतिक्रया के लिए आभार !!

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