"गुम सुम सी बैठी रहती हूँ "
गुम सुम सी बैठी रहती हूँ।
ख़्वाबों को ख्यालों को ,
नयनों मे बसाती रहती हूँ ।
थक जाते हैं मेरे ये नयन ,
पर मैं तो कभी नहीं थकती ।
गुम सुम ........................ ।
कानों को कभी लगे आहट ,
आते हैं होठों पर ये हँसी ।
पल भर की ये उम्मीदें थीं ,
दूसरे क्षण ही विलीन हुए ।
गुम सुम सी ................... ।
फिर आया एक झोंका ऐसा ,
सब लेकर दूर चला गया ।
अब बैठी हूँ चुप चाप मगर ,
न ख्वाब है, न ख़्याल ही है।
ख़्वाबों को ख्यालों को ,
नयनों मे बसाती रहती हूँ ।
थक जाते हैं मेरे ये नयन ,
पर मैं तो कभी नहीं थकती ।
गुम सुम ........................ ।
कानों को कभी लगे आहट ,
आते हैं होठों पर ये हँसी ।
पल भर की ये उम्मीदें थीं ,
दूसरे क्षण ही विलीन हुए ।
गुम सुम सी ................... ।
फिर आया एक झोंका ऐसा ,
सब लेकर दूर चला गया ।
अब बैठी हूँ चुप चाप मगर ,
न ख्वाब है, न ख़्याल ही है।
-कुसुम ठाकुर -
फिर आया एक झोंका ऐसा ,
ReplyDeleteसब लेकर दूर चला गया ।
झोके तो आते रहते हैं. ख्वाबो खयालो को फिर भी जिन्दा रखना ही होगा.
सुन्दर खयाल
सुन्दर एवं भावपूर्ण रचना ! अति उत्तम !
ReplyDeletehttp://sudhinama.blogspot.com
http://sadhanavaid.blogspot.com
कानों को कभी लगे आहट ,
ReplyDeleteआते हैं होठों पर ये हँसी ।
पल भर की ये उम्मीदें थीं ,
दूसरे क्षण ही विलीन हुए ।
ye panktiyan bahut khoob lagi..
http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना।
ReplyDelete"अब बैठी हूँ चुप चाप मगर ,
ReplyDeleteन ख्वाब है, न ख़्याल ही है।"
खूब जिया है ऐसे पलो को हमने भी बताऊँ कैसे,
जिन पलो में मृत थे हम वो पल अब दोहराऊं कैसे,
KUNWAR JI,
फिर आया एक झोंका ऐसा ,
ReplyDeleteसब लेकर दूर चला गया ।
अब बैठी हूँ चुप चाप मगर ,
न ख्वाब है, न ख़्याल ही है।
Bahut khoob !
बहुत सुंदर रचना...
ReplyDeleteवाह कुसुम जी बहुत सुंदर.
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावपूण रचना !!
ReplyDeleteकई रंगों को समेटे एक खूबसूरत भाव दर्शाती बढ़िया कविता...बधाई
ReplyDeleteसुन्दर एवं भावपूर्ण रचना !
ReplyDeleteफिर आया एक झोंका ऐसा ,
ReplyDeleteसब लेकर दूर चला गया ।
अब बैठी हूँ चुप चाप मगर ,
न ख्वाब है, न ख़्याल ही है।
atyant gahan abhivyakti.
at one point , we feel it..
ReplyDelete"अब बैठी हूँ चुप चाप मगर ,
ReplyDeleteन ख्वाब है, न ख़्याल ही है।"
कई बार होता है ऐसा । पर ख्वाब है तो जीवन जीने की इच्छा है । सुंदर रचना ।
फिर आया एक झोंका ऐसा ,
ReplyDeleteसब लेकर दूर चला गया ।
अब बैठी हूँ चुप चाप मगर ,
न ख्वाब है, न ख़्याल ही है।
ओह !!..कितने ही मन की बातें उजागर कर गयीं ये पंक्तियाँ
Very Good.
ReplyDeleteपल भर की ये उम्मीदें थीं ,
ReplyDeleteदूसरे क्षण ही विलीन हुए ।
गुम सुम सी ................... ।
फिर आया एक झोंका ऐसा ,
सब लेकर दूर चला गया ।
अब बैठी हूँ चुप चाप मगर ,
न ख्वाब है, न ख़्याल ही है।
" umda "
----eksacchai {aawaz}
http://eksacchai.blogspot.com
प्रतिक्रिया के लिए आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद !!
ReplyDelete