Thursday, October 29, 2009

ढूँढूँ तो पाऊँ मैं कैसे


"ढूँढू तो पाऊँ मैं कैसे "

पर ढूँढूँ मैं तुमको वैसे ,
ढूँढूँ तो पाऊँ मैं कैसे ?

आज मैं कहना कुछ चाहूँ
पर ,कहूँ किसे यह समझ न पाऊँ ।
याद करूँ मैं हर पल तुमको ,
 ढूँढूँ कैसे समझ न हमको।

कैसे बीता साथ सफर यह
समझ न पाई राज अभी वह।
अब तो लगता दिन भी भारी ,
रातों को तो स्वप्न ही सारी।

ध्यान में लिए छवि मैं सींचूं ,
पलक संपुटों में मैं भींचूं ।
जाने कब वह बस गयी उर में ,
चली गयी निद्रा के वश में ।

अर्ध रात्रि को नींद खुली तो ,
कानों ने यह बात सुनी तो _
मैंने तुमसे प्यार किया है ,
अपना सब कुछ वार दिया है ।

पर ढूँढूँ मैं तुमको वैसे ,
ढूढूं तो पाऊँ मैं कैसे ?

- कुसुम ठाकुर -




9 comments:

  1. mil jayega
    mil jayega
    mil jayega
    achchhi rachna

    ReplyDelete
  2. यह कविता अपने बनावट और बुनावट से एक बेहतरीन रचना तो है ही साथ मे भाव भी इतना प्रवाह मय है की इसे गुनगुनाने को जी चाह रहा है.......बहुत बहुत बधाई!

    ReplyDelete
  3. बहुत सुंदर सोच है आप की

    ReplyDelete
  4. एक बेहतरीन रचना....बहुत बहुत बधाई!

    ReplyDelete
  5. अर्ध रात्रि को नींद खुली तो ,
    कानों ने यह बात सुनी कि _
    मैंने तुमसे प्यार किया है ,
    अपना सब कुछ वार दिया है ।
    shandaar...

    ReplyDelete
  6. समर्पण का भाव लिए प्रवाहपूर्ण रचना कुसुम जी। सुन्दर।

    चाह अगर सच्ची हो दिल में लगा हो उस पर ध्यान।
    नहीं ढ़ूँढ़ना पड़े उसे कुछ मिल जाते भगवान।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    www.manoramsuman.blogspot.com

    ReplyDelete
  7. आप सभी साथी चिट्ठाकारों को उत्साह बढाने के लिए बहु बहुत धन्यवाद ।

    ReplyDelete
  8. बहुत सुन्दर व भावपूर्ण कविता के लिए बधाई।
    घुघूती बासूती

    ReplyDelete