Wednesday, October 28, 2009

रहूँ मैं ऊहापोह में

"रहूँ मैं ऊहापोह में " 
 सोचूँ मैंने क्या बुरा किया , दिल की कही न छोड़ दिया । 
समय की पुकार को , किया कभी न अनसुना । 
 किया कभी न आत्मसात , ह्रदय की पुकार को । 
चली तो सदा साथ साथ , समय को निहार कर । 
 कठिन तो लागे है डगर , यह सोचूँ बार बार मैं । 
दिल की कही जो छोड़ दूँ । रहूँ मैं ऊहापोह में । 
 - कुसुम ठाकुर -

8 comments:

  1. अच्छा लिखा है ........ दिल का सोचा ही करना चाहिए .......... दिल के जज्बातों को अच्छे से उतारा है आपने ......

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  2. दिल की कही जो छोड़ दूँ ।
    रहूँ मैं ऊहापोह में ।
    दिल की सुनिए , मस्त रहिये

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  3. यही मन्थन ज़िन्दगी भर चलता है
    और
    जीवन अपनी गति से चलता रहता है


    बहुत उम्दा ----------भावपूर्ण कविता
    अभिनन्दन !

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  4. अपने मनोभावों को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं।बधाई।

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  5. बिना सोचे ज़िंदगी गुज़ारने वाले ऊहा-पोह में ही रहते हैं.. लेकिन आप ऐसा मत करिएगा..

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  6. हम तो दिल की ही सुनते आये हैं ...आपको भी यही सलाह दे सकते हैं ...मुफ्त में सलाह देने लेने में क्या जाता है ...!!

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  7. सुन्दर अभिव्यक्ति है शुभकामनायें

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  8. आपके सुझाव और प्रतिक्रिया के लिए आभार ।

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