Saturday, October 24, 2009

कैसे कहूँ मुझे क्यों है फिकर इतनी


" मुझे क्यों है फिकर इतनी "

कैसे कहूँ मुझे क्यों है फिकर इतनी ,
कभी ख़ुद के लिए न शिकन जितनी ।
सुनी जब से है नासाज तबियत उसकी ,
न है चैन न पाऊँ तो ख़बर उसकी ।

कहने को तो दूर है वो मुझसे,
पर लगता है जैसे वो करीब रूह से ।
महसूस मैं करुँ बदलूँ जब करवट,
हाय इस हाल में तड़पूँ कब तक ।

लगूँ गैर सा मगर ये तड़प जब तक ,
आए भी न चैन न लूँ साँसें तब तक ।
कोई बतला दे मैं बयाँ करूँ कैसे ,
न मैं गैर, न हूँ अजनबी वैसे ।।

- कुसुम ठाकुर -


8 comments:

  1. आपकी कविता अच्छी लगी

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  2. आपकी कविता अच्छी लगी

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  3. बहुत प्यारी रचना है जी

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  4. एक प्यारा एहसास जब इंसान प्यार होता है तो ऐसाही होता है न?

    बहुत ही खुबसूरत रचना!

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  5. किसी का अहसास जब हर पल अपने साथ रहता है तो इतनी ही फिक्र होती है ...

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  6. लगूँ गैर सा, मगर ये तड़प जब तक ,
    आए भी न चैन , न लूँ साँसें तब तक ।
    कोई बतला दे, मैं बयाँ करूँ कैसे ,
    न मैं गैर, न हूँ अजनबी वैसे ।।
    bahut hi umda rachana ....badhai

    ----- eksacchai{ AAWAZ }

    http://eksacchai.blogspot.com

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  7. आप सभी साथी चिट्ठाकारों को उत्साहवर्धन के लिए
    बहुत बहुत धन्यवाद।

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