लल्लन प्रसाद ठाकुर का नाट्य के प्रति अभिरुचि तो बचपन से रही और अपने स्कूल के दिनों से ही नाटक करते आए परन्तु जमशेदपुर आने के बाद अपने नाट्य लेखन, निर्देशन एवं अभिनय की शुरुआत सुरक्षा नाटक से की। टिस्को में सुरक्षा के प्रति जागरूकता लाने के लिए प्रतिवर्ष सुरक्षा नाटक का आयोजन होता था जिसका मंचन प्रत्येक विभाग के कर्मचारी और अधिकारी मिलकर करते थे। करीब एक महीने तक यह प्रतियोगिता चलती थी और सबसे अच्छे दो नाटकों को पुरष्कृत किया जाता था।
जमशेदपुर में सुरक्षा नाटक इतना नीरस होता था कि बहुत कम लोग उस नाटक को देखने जाते थे। बस कुछ अपने विभागीय एवम् कुछ दूसरे विभाग के प्रतियोगी जिन्हें अपने विभाग के नाटक की तुलना दूसरे विभाग से करना होता था ही इस नाटक को देखने जाते थे। यहाँ तक कि नाटक मंचन पर खर्च भी बहुत ही कम किया जाता था और बिल्कुल साधारण सा प्रेक्षागृह में नाटक का मंचन होता था जो अपने अपने विभाग को वहन करना पङता था।
टिस्को में पद भार संभालने के बाद पहले साल ही श्री ठाकुर ने अपने विभाग के नाटक में अभिनय एवं उसके सम्वाद में फेर बदल किया और सर्वश्रेष्ट अभिनेता का पुरस्कार प्राप्त किया। दूसरे वर्ष विभागीय अधिकारियों ने जब श्री ठाकुर से नाटक के निर्देशन का अनुरोध किया तो उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि नाटक तो वो करवा सकते हैं परन्तु वे ख़ुद की लिखी हुई नाटक का मंचन करेंगे, दूसरा रविन्द्रभवन जो कि जमशेदपुर का सबसे अच्छा प्रेक्षागृह था उसी में करेंगे। अधिकारियों ने मान ली और उस वर्ष सुरक्षा नाटक बड़ी धूम धाम से मनाई गयी। पुरस्कार सारा श्री ठाकुर एवं उनके नाटक को ही मिला। उस नाटक में श्री ठाकुर ने राक्षस की भूमिका निभाई थी। उस वर्ष के बाद सुरक्षा नाटक देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती थी और फिर सुरक्षा नाटक भी मनोरंजक बन गया।
shri thakur ji se milkar achha laga
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