Sunday, June 7, 2009

मेरा साथी

मेरा साथी

मुझे मिला एक साथी
थी जिस पर न्योछावर
रात दिन मैं उसकी
सपनों मे रहती थी डूबी
एक तो वो विद्वान
और मैं अनपढ़ नादान
दूजे मैं ऐसी प्रतिभा
न देखी फिर
सुनी तो फिर भी कभी कभी
पर जब तक उसके मोल को
मैं समझ और सहेज पाती
वह देकर धोखा मुझे
चला गया किसी और देश
जहाँ से न कोई लौटा है
और ख़बर ही भेजा है ।

-कुसुम ठाकुर -

6 comments:

  1. यही दुनिया का उशूल है स्वार्थ लागी करे सब प्रीति,, बहुत अच्छी अभिव्यक्ति है
    सादर
    प्रवीण पथिक
    9971969084

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  2. क्या बात है...कुसुम जी..चाँद पंक्तियों में आपने कईयों के जीवन की पूरी कहानी कह दी है....अभिव्यक्ति का एक शाश्क्त उदाहरण....लिखती रहे...

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  3. achhi kavita
    umda kavita
    badhai____________

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  4. aapne suna to hoga
    bade logon se milne men zara sa fasala rakhna.
    jahan dariya samandar se mila dariya
    nahin rahta

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  5. आपकी इस कविता पर मुझे बचपन के दिन याद आते हैं जब कुछ भी मन की बात लिखने के लिए कविता का सहारा लेना पड़ता था.

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  6. प्रेम की अद्वितीय अभिव्यक्ति,
    साथी का संबल ही तो है जो आपके पास न होते हुए भी होने का अहसास कराता है और आपको शशक्त बनाता है .

    सुंदर और प्रेम पूर्ण अभिव्यक्ती

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