Wednesday, May 30, 2012

क्या पाया यह मत बोल !



"क्या पाया यह मत बोल"

कल-कल करती निशदिन नदियाँ,
अंक में अपने भर लेती हैं,
चाहे पत्थर हो या फूल,
क्या पाया यह मत बोल ।

काँटों में रहकर मुस्काना ,
मुरझाकर भी काम में आना,
कुसुम न हो कमजोर,
क्या पाया यह मत बोल ।

दिन तो प्रतिदिन ही ढलता है ,
फिर भी तेज़ कहाँ थमता है
यह राज न पाओ खोल ,
क्या पाया यह मत बोल ।

हम स्वतंत्र आए जग में जब
और अकेला ही जाना अब
करे बेड़ियाँ कमजोर
क्या पाया यह मत बोल


मूल से सूद सभी को प्यारा
खुशियाँ जो मिलती दोबारा
अब मिले न ख़ुशी का ओर
क्या पाया यह मत  बोल

-कुसुम ठाकुर- 

8 comments:

  1. अच्छी रचना के लिए बधाई

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  2. सच्‍ची बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ..

    अच्‍छी लगी रचना !!

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  3. है प्रवाह संग रचना प्यारी
    कुसुम की खुशबू जैसी न्यारी
    ह्रदय सुमन का दिया है खोल
    जो भी पाया जल्दी बोल
    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    http://www.manoramsuman.blogspot.com
    http://meraayeena.blogspot.com/
    http://maithilbhooshan.blogspot.com/

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  4. Very well written.

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  5. very nice @heart touching poem

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  6. First time i steeped in here....nice post

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  7. दिन तो प्रतिदिन ही ढलता है ,
    फिर भी तेज़ कहाँ थमता है
    यह राज न पाओ खोल ,
    क्या पाया यह मत बोल ।
    वाह!!! बहुत ही सुंदर भाव संयोजन किया है आपने बहुत खूब।

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