(आज की रचना उस प्रिय व्यक्ति के लिए है जिन्होंने मुझे इस काबिल बनाया कि आज मैं अपने भावों को लिख पाऊं)
नैन से बरसात क्यों?
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कह सकूं मैं आज फिर से ना कहूँ वो बात क्यों?
आज फिर छलकीं हैं, खुशियाँ नैन से बरसात क्यों?
बात कर इंसानियत की पहले तू इंसान बन
तुम ख़ुशी गर दे ना पाए बेवजह आघात क्यों?
गीत विस्मृत गुनगुनाऊं, अब भी वह अनुराग है
अपने सुर में गीत वो गाऊँ बदल जज्बात क्यों?
रिश्ते होते जो भी नाजुक बाँध उसको प्यार से
जिन्दगी कितने दिनों की बात से फिर घात क्यों?
सींचता है सोच माली गुल से ही गुलजार हो
जो कुसुम खुशबू लुटाए, तोड़ते बेबात क्यों?
कृतज्ञता प्रकट करते हुए,
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ग़ज़ल लिखी है आपने!
Badhiya rachnaa !
ReplyDeleteइंसानियत की बात करते , इंसान तो पहले बनो
ReplyDeleteयदि ख़ुशी तुम दे न पाओ दे रहे आघात क्यों
BEJOD RACHNA...BADHAI
भावों की बेहतर प्रस्तुति,
ReplyDeleteश्रधांजलि.
bahut sundar
ReplyDeleteइंसानियत की बात करते , इंसान तो पहले बनो
ReplyDeleteयदि ख़ुशी तुम दे न पाओ दे रहे आघात क्यों
बेहतरीन शेर ,
लाजवाब गज़ल !!
behtarin ghazal..sadar badhayee aaur amantran ke sath
ReplyDeletebehtarin ghazal..sadar badhayee aaur amantran ke sath
ReplyDeleteभावना प्रधान रचना है।बेहतर गज़ल लिखी है।
ReplyDeletekya baat hai.....
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