मैं न उसमे बही सही
"मैं न उसमे बही सही"
मैंने मन की कही सही
जो सोचा वह सही-सही
भूली बिसरी यादें फिर भी
आज कहूँ न रही सही
कितना भी दिल को समझाऊँ
आँख हुआ नम यही सही
वह रूठा न जाने कब से
प्यार अलग सा वही सही
रंग अजब दुनिया की देखी
मैं न उसमे बही सही
- कुसुम ठाकुर-
बहुत सुन्दर भाव संजोये हैं।
ReplyDeletesunder prastuti..sadar badhayee
ReplyDeleteभावनाओं का बहता रेला ..यही सही
ReplyDeleteबढ़िया अभिव्यक्ति
ReplyDeleteGyan Darpan
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
ReplyDeleteयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।">चर्चा
सुन्दर प्रयास ......किया तो सही ...... शुभकामनाएं जी
ReplyDeleteबहुत बढ़िया कृति....
ReplyDeleteसादर बधाई...
प्यार का सुंदर अहसास.
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति के लिये बधाई स्वीकारें.
आँखें नम हो ही जाती हैं...
ReplyDeleteसुन्दर रचना!
भावपूर्ण अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteप्यार की अलग पहचान.... सजी हुई अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना...बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteनीरज
रंग अजब देखे दुनिया के मैं न उसमें बही सही
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर भाव .....
भावमयी अभिव्यक्ति!!
ReplyDeleteआपका विचार समाज की भावना की अभिव्यक्ति है. हम आपको आपने National News Portal पर लिखने के लिये आमंत्रित करते हैं.
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