"हरएक आँख में नमी"
लगे अमन की कमी इस खूबसूरत जहाँ में
बँटी हुई क्यों जमीं इस खूबसूरत जहाँ में
कर्म आधार था जीने का कैसे जाति बनी
हरएक आँख में नमी इस खूबसूरत जहाँ में
जहाँ पानी भी अमृत है, बोल कडवे क्यों
गंग की धार भी थमी इस खूबसूरत जहाँ में
सिसकते लोग मगर पूजते पत्थर
भावना की है कमी इस खूबसूरत जहाँ में
यूँ तो मालिक सभी का एक नाम कुछ भी दे दो
कुसुम बने न मौसमी इस खूबसूरत जहाँ में
-कुसुम ठाकुर-
सिसकते लोग मगर पूजते पत्थर
ReplyDeleteभावना की है कमी इस खूबसूरत जहाँ में
khubsurat sher mubarak ho......
सिसकते लोग मगर पूजते पत्थर
ReplyDeleteभावना की है कमी इस खूबसूरत जहाँ में
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ग़ज़ल के सभी अशआर बहुत खूबसूरत हैं!
बदल रहे समय का स्पष्ट प्रभाव दर्शाती ख़ूबसूरत ग़ज़ल!
ReplyDeleteख़ूबसूरत ग़ज़ल!
ReplyDeleteसिसकते लोग मगर पूजते पत्थर
ReplyDeleteभावना की है कमी इस खूबसूरत जहाँ में
शानदार।
सिसकते लोग मगर पूजते पत्थर
ReplyDeleteभावना की है कमी इस खूबसूरत जहाँ में
अति सुन्दर,
आरक्षण पर लिखी एक बेहतरीन कविता ।
ReplyDeleteशानदार
ReplyDeleteway4host
,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति
मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाये
ReplyDeleteकर्म आधार था जीने का कैसे जाति बनी
ReplyDeleteहरएक आँख में नमी इस खूबसूरत जहाँ में
बहुत उम्दा ग़ज़ल....
सादर...
सिसकते लोग मगर पूजते पत्थर
ReplyDeleteभावना की है कमी इस खूबसूरत जहाँ में.
खूबसूरत अशआर ने दिलकश गज़ल को जन्म दिया है. बधाईयाँ.
खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति
बहुत खूबसूरत रचना ... कुसुम बने न मौसमी इस खूबसूरत जहाँ में
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteब्लॉग की 100 वीं पोस्ट पर आपका स्वागत है!
!!अवलोकन हेतु यहाँ प्रतिदिन पधारे!!
कुसुम ठाकुर जी,
ReplyDeleteनमस्कार,
आपके ब्लॉग को "सिटी जलालाबाद डाट ब्लॉगपोस्ट डाट काम" के "हिंदी ब्लॉग लिस्ट पेज" पर लिंक किया जा रहा है|