Wednesday, July 20, 2011

नहीं है प्रेम की सीमा

"नहीं है प्रेम की सीमा"

छवि बसती जो नैनों में उसे झुठलाया नहीं जाता
प्रेम का पाश बंधने पर उसे सुलझाया नहीं जाता

डूब जाए अगर प्रेमी  झील सी गहरी आँखों में
नयन चार जब हो जाए तो शरमाया नहीं जाता

विकलता इंतजारी में धैर्य की क्या बने सीमा
मिलन को प्रेमी जब आतुर उसे तड़पाया नहीं जाता

समर्पण भाव से जब है झिझक फिर छोड़ना लाजिम
ख़ुशी और गम ह्रदय में जब उसे बिसराया नहीं जाता

नहीं है प्रेम की सीमा निहित हो भाव कोमल सा 
कुसुम कोमल उसे काँटों से सहलाया नहीं जाता 

-कुसुम ठाकुर-

7 comments:

  1. नहीं है प्रेम की सीमा निहित हो भाव कोमल सा
    कुसुम कोमल उसे काँटों से सहलाया नहीं जाता
    ..bahut sundar prem paribhashit rachna...

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  2. कोमल से भाव से सजी अच्छी रचना

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  3. प्यार को आपने बहुत ही कोमल भावनाओं से सजाया है। आभार।

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  4. प्रेममयी रचना अच्छी लगी , बधाई

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  5. सीमाहीन प्रेममयी कविता...मन को मोहती है...

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  6. प्रेम के कोमल भाव और उसकी गहराइयों को समझाती हुई एक खूबसूरत ग़ज़ल कुसुम जी - बधाई - कभी की लिखी अपनी ये पंक्तियाँ याद आ गयीं-

    जिन्दगी में इश्क का इक सिलसिला चलता रहा
    लोग कहते रोग है फिर दिल में क्यों पलता रहा

    जिन्दगी तो बस मुहब्बत और मुहब्बत जिन्दगी
    तब सुमन दहशत में जी कर हाथ क्यों मलता रहा

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    http://www.manoramsuman.blogspot.com
    http://meraayeena.blogspot.com/
    http://maithilbhooshan.blogspot.com/

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  7. प्रेम से परिपूर्ण सुन्दर रचना

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