"नहीं है प्रेम की सीमा"
छवि बसती जो नैनों में उसे झुठलाया नहीं जाता
प्रेम का पाश बंधने पर उसे सुलझाया नहीं जाता
डूब जाए अगर प्रेमी झील सी गहरी आँखों में
नयन चार जब हो जाए तो शरमाया नहीं जाता
विकलता इंतजारी में धैर्य की क्या बने सीमा
मिलन को प्रेमी जब आतुर उसे तड़पाया नहीं जाता
समर्पण भाव से जब है झिझक फिर छोड़ना लाजिम
ख़ुशी और गम ह्रदय में जब उसे बिसराया नहीं जाता
नहीं है प्रेम की सीमा निहित हो भाव कोमल सा
कुसुम कोमल उसे काँटों से सहलाया नहीं जाता
-कुसुम ठाकुर-
नहीं है प्रेम की सीमा निहित हो भाव कोमल सा
ReplyDeleteकुसुम कोमल उसे काँटों से सहलाया नहीं जाता
..bahut sundar prem paribhashit rachna...
कोमल से भाव से सजी अच्छी रचना
ReplyDeleteप्यार को आपने बहुत ही कोमल भावनाओं से सजाया है। आभार।
ReplyDeleteप्रेममयी रचना अच्छी लगी , बधाई
ReplyDeleteसीमाहीन प्रेममयी कविता...मन को मोहती है...
ReplyDeleteप्रेम के कोमल भाव और उसकी गहराइयों को समझाती हुई एक खूबसूरत ग़ज़ल कुसुम जी - बधाई - कभी की लिखी अपनी ये पंक्तियाँ याद आ गयीं-
ReplyDeleteजिन्दगी में इश्क का इक सिलसिला चलता रहा
लोग कहते रोग है फिर दिल में क्यों पलता रहा
जिन्दगी तो बस मुहब्बत और मुहब्बत जिन्दगी
तब सुमन दहशत में जी कर हाथ क्यों मलता रहा
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
http://www.manoramsuman.blogspot.com
http://meraayeena.blogspot.com/
http://maithilbhooshan.blogspot.com/
प्रेम से परिपूर्ण सुन्दर रचना
ReplyDelete