"दर्द की सौगात दूँ मैं"
है इबादत इश्क तो संगीत से पूजा करूँ मैं
हो मुकम्मल या नहीं क्यों व्यर्थ की आहें भरूँ मैं
तिश्नगी मिटती नहीं और मुमकिन भी नहीं
हो रही झंकृत हृदय की वेदना फिर से सुनूँ मैं
भाव कोमल दिल में पलता इश्क सच्चा है अगर
दिल की सारी बातें सुनकर स्वप्न में बेज़ार हूँ मैं
कुछ भी मुमकिन है अगर नित भाव सपनों के सजे
भूल कर के प्यार को क्यों दर्द की सौगात दूँ मैं
प्यार में संजीदगी का है अलग इक मोल अपना
है यही फितरत कुसुम की हारकर भी खुश रहूँ मैं
हो मुकम्मल या नहीं क्यों व्यर्थ की आहें भरूँ मैं
तिश्नगी मिटती नहीं और मुमकिन भी नहीं
हो रही झंकृत हृदय की वेदना फिर से सुनूँ मैं
भाव कोमल दिल में पलता इश्क सच्चा है अगर
दिल की सारी बातें सुनकर स्वप्न में बेज़ार हूँ मैं
कुछ भी मुमकिन है अगर नित भाव सपनों के सजे
भूल कर के प्यार को क्यों दर्द की सौगात दूँ मैं
प्यार में संजीदगी का है अलग इक मोल अपना
है यही फितरत कुसुम की हारकर भी खुश रहूँ मैं
-कुसुम ठाकुर-
इबादत - ईश्वर की उपासना, पूजा
मुकम्मल - पूर्ण, पूरा
तिश्नगी - प्यास, पिपासा
संजीदगी - गंभीरता
positivity ki or le jati huee khoobsoorat panktiyan ...
ReplyDeleteहै यही फितरत कुसुम की हारकर भी खुश रहूँ मैं
ReplyDeleteवाह...वाह...वाह...लाजवाब पंक्तियाँ...बेहतरीन रचना...बधाई स्वीकारें
नीरज
वाह - क्या बात है? दिल की गहराईयों से निकले जज्बात को खूब पिरोया है शब्दों में आपने कुसुम जी। आदत से मजबूर लीजिए उसी गोत्र-मूल से दो त्वरित पंक्तियाँ-
ReplyDeleteदर्द के सौगात हों या प्यार की कोमल सदाएं
है सुमन स्वीकार दिल से आस में कबतक रहूँ मैं
सादर
श्यामल सुमन
+919955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
bhaaw-vibhor karti panktiya.badhhai swikaare.
ReplyDeleteहै इबादत इश्क तो संगीत से पूजा करूँ मैं
ReplyDeleteहो मुकम्मल या नहीं क्यों व्यर्थ की आहें भरूँ मैं
प्यार में संजीदगी का है अलग इक मोल अपना
है यही फितरत कुसुम की हारकर भी खुश रहूँ मैं
वाह वाह …………गज़ब के भाव भरे हैं…………सुन्दर भावाव्यक्ति।
सुन्दर भावाव्यक्ति। लाजवाब पंक्तियाँ|
ReplyDeleteकुछ भी मुमकिन है अगर नित भाव सपनों के सजे
ReplyDeleteभूल कर के प्यार को क्यों दर्द की सौगात दूँ मैं
प्यार में संजीदगी का है अलग इक मोल अपना
है यही फितरत कुसुम की हारकर भी खुश रहूँ मैं
behatarin
प्यार में संजीदगी का है अलग इक मोल अपना...
ReplyDeleteकितना बड़ा सच है यह.... कुसुम कि कविताओं में हमेशा गहरे भाव और भाषा की सादगी होती है... आसानी से अपनी बात कहने का तजुर्बा है ... |