Wednesday, June 15, 2011

दर्द की सौगात दूँ मैं


"दर्द की सौगात दूँ मैं"

 है इबादत इश्क तो संगीत से पूजा करूँ मैं
हो मुकम्मल या नहीं क्यों व्यर्थ की आहें भरूँ मैं

तिश्नगी मिटती नहीं और मुमकिन भी नहीं
हो रही झंकृत हृदय की वेदना फिर से सुनूँ मैं

भाव कोमल दिल में पलता इश्क सच्चा है अगर
दिल की सारी बातें सुनकर स्वप्न में बेज़ार हूँ मैं

कुछ भी मुमकिन है अगर नित भाव सपनों के सजे
भूल कर के प्यार को क्यों दर्द की सौगात दूँ मैं

प्यार में संजीदगी का है अलग इक मोल अपना
है यही फितरत कुसुम की हारकर भी खुश रहूँ मैं

-कुसुम ठाकुर-

इबादत - ईश्वर की उपासना, पूजा 
मुकम्मल - पूर्ण, पूरा
तिश्नगी - प्यास, पिपासा 
संजीदगी - गंभीरता 

8 comments:

  1. positivity ki or le jati huee khoobsoorat panktiyan ...

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  2. है यही फितरत कुसुम की हारकर भी खुश रहूँ मैं

    वाह...वाह...वाह...लाजवाब पंक्तियाँ...बेहतरीन रचना...बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  3. वाह - क्या बात है? दिल की गहराईयों से निकले जज्बात को खूब पिरोया है शब्दों में आपने कुसुम जी। आदत से मजबूर लीजिए उसी गोत्र-मूल से दो त्वरित पंक्तियाँ-

    दर्द के सौगात हों या प्यार की कोमल सदाएं
    है सुमन स्वीकार दिल से आस में कबतक रहूँ मैं

    सादर
    श्यामल सुमन
    +919955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  4. bhaaw-vibhor karti panktiya.badhhai swikaare.

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  5. है इबादत इश्क तो संगीत से पूजा करूँ मैं
    हो मुकम्मल या नहीं क्यों व्यर्थ की आहें भरूँ मैं
    प्यार में संजीदगी का है अलग इक मोल अपना
    है यही फितरत कुसुम की हारकर भी खुश रहूँ मैं
    वाह वाह …………गज़ब के भाव भरे हैं…………सुन्दर भावाव्यक्ति।

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  6. सुन्दर भावाव्यक्ति। लाजवाब पंक्तियाँ|

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  7. कुछ भी मुमकिन है अगर नित भाव सपनों के सजे
    भूल कर के प्यार को क्यों दर्द की सौगात दूँ मैं

    प्यार में संजीदगी का है अलग इक मोल अपना
    है यही फितरत कुसुम की हारकर भी खुश रहूँ मैं

    behatarin

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  8. प्यार में संजीदगी का है अलग इक मोल अपना...

    कितना बड़ा सच है यह.... कुसुम कि कविताओं में हमेशा गहरे भाव और भाषा की सादगी होती है... आसानी से अपनी बात कहने का तजुर्बा है ... |

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