Tuesday, April 26, 2011

धडकनों को तो अबतक जाना नहीं

"धडकनों को तो अबतक जाना नहीं"

दिल की ख्वाहिश सही, फिकर क्यूँ नहीं  
यूँ तसव्वुर कहूँ, यह सिफर तो नहीं

मैं दिल का कहा अब भी सुनता कहाँ 
क्या  कहूँ कब कहूँ यह फिकर ही नहीं 

 दिल की बेताबियाँ, क्या कहूँ खूबियाँ 
 बस सफ़र रह गई, वह भी माना नहीं 

है तलबगार फिर क्यों मैं आहें भरूँ 
तरन्नुम तो अब वो मुमकिन नहीं

अलविदा तुमने कह दी मेरे हमसफ़र
धडकनों को तो अबतक जाना नहीं 

-कुसुम ठाकुर- 

शब्दार्थ : 

तसव्वुर - ध्यान, ख्याल, कल्पना, विचार 
सिफर - अवकाश, शून्य, खाली होने का भाव, सुन्ना, बिंदी
तलबगार - चाहने वाला 
तरन्नुम - स्वर , माधुर्य





2 comments:

  1. गहरा अर्थ समेटे है अपने भीतर कविता...

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  2. बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।

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