Monday, January 17, 2011

हुआ है सवेरा

"हुआ है सवेरा"

 बह चली ऐसी आँधी, छाया नभ में अँधेरा,
चहु दिशा कुछ न सूझे, उड़ गया है बसेरा 


दिन हो गया है काला, रात घनघोर अँधेरा,
लगता है अब न होगा, इस अंधियारे का सवेरा 

टहनियों पर काँपते खग, हैं बच्चों को समेटे ,
आस किरणों का बचा है जाने कब हो सवेरा

पौ फटते चहक उठे खग, देख उषा मुस्कुराती,
प्रलय के संताप से न रुके,जब हुआ हो सवेरा

खोज में चल पड़े खग, क्यों हो उत्साह कम,  
नीड़ निर्माण का सुख, क्यों न हो हुआ है सवेरा। 


- कुसुम ठाकुर-



3 comments:

  1. बहुत प्यरी सी कविता ...धन्यवाद

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  2. बड़ा ही सुन्दर चित्रण आपने प्रस्तुत किया है

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  3. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ,विषय में खग और तुकान्त में बसेरा , सबेरा और अंधेरा के अलावा कुछ और शब्द लाये जायें तो शायद ये और ख़ूबसूरत लगती।

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