जाने मन ढूंढता क्यों है
पाकर स्नेह सम्भलता क्यों है
ठहर न पाया जो सदियों तक
उसके लिए सिसकता क्यों है
स्वप्न दिखा ज्यों बीते पल के
बस उसमें चमकता क्यों है
समझ न पाया क्या थी नेमत
फिर उससे डरता क्यों है
चाहत की अनुभूति फिर भी
हर पल वह लुढ़कता क्यों है
पा सदियों का स्नेह पलों में
न जाने तरसता क्यों है
कुसुम कामना वह काम आए
फिर कलियां मुरझाता क्यों है ?
- कुसुम ठाकुर -
सुंदर अतिसुन्दर बधाई
ReplyDeleteपा सदियों का स्नेह पलों में
ReplyDeleteन जाने अब तरसता क्यों है
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
हिन्दी का प्रचार राष्ट्रीयता का प्रचार है।
हिंदी और अर्थव्यवस्था, राजभाषा हिन्दी पर, पधारें
चाहत की अनुभूति फिर भी
ReplyDeleteवह हर पल लुढ़कता क्यों है
बहुत सहज-सुंदर शब्दों में भावाभिव्यक्ति
पा सदियों का स्नेह पलों में
ReplyDeleteन जाने अब तरसता क्यों है
सुंदर शब्द संयोजन है कुसुम जी।
अच्छी कविता बन पड़ी है।
आभार
सुन्दर भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteठहर न पाया जो सदियों तक
ReplyDeleteउसके लिए सिसकता क्यों है
बहुत खूब। धन्यवाद। शुभकामनायें
पा सदियों का स्नेह पलों में
ReplyDeleteन जाने अब तरसता क्यों है
यही तो त्रासदी है जितना मिल जाये और चाह बढ जाती है………………सुन्दर अभिव्यक्ति।
क्या आप हिंदी ब्लॉग संकलक हमारीवाणी के सदस्य हैं?
ReplyDeleteहमारीवाणी पर ब्लॉग पंजीकृत करने की विधि
आप सबों को बहुत बहुत धन्यवाद !!
ReplyDeleteठहर न पाया जो सदियों तक
ReplyDeleteउसके लिए सिसकता क्यों है
such deep & emotional lines.... excellent is d only word....
सुन्दर ...मन की कोमल अनुभूतियाँ सामने आयी . आपके कवि-मन को बधाई.....
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