Tuesday, September 7, 2010

जाने मन ढूँढता क्यों है


जाने मन ढूंढता क्यों है 
पाकर स्नेह सम्भलता क्यों है

ठहर न पाया जो सदियों तक 
उसके लिए सिसकता क्यों है 

स्वप्न दिखा ज्यों बीते पल के 
बस उसमें  चमकता क्यों है 

समझ न पाया क्या थी नेमत 
फिर उससे डरता क्यों है 

चाहत की अनुभूति फिर भी 
हर पल वह लुढ़कता क्यों है 

पा सदियों का स्नेह पलों में 
न जाने तरसता क्यों है  

कुसुम कामना वह काम आए
फिर कलियां  मुरझाता क्यों है ?

- कुसुम ठाकुर -

11 comments:

  1. सुंदर अतिसुन्दर बधाई

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  2. पा सदियों का स्नेह पलों में
    न जाने अब तरसता क्यों है
    बहुत अच्छी प्रस्तुति।

    हिन्दी का प्रचार राष्ट्रीयता का प्रचार है।

    हिंदी और अर्थव्यवस्था, राजभाषा हिन्दी पर, पधारें

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  3. चाहत की अनुभूति फिर भी
    वह हर पल लुढ़कता क्यों है

    बहुत सहज-सुंदर शब्दों में भावाभिव्यक्ति

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  4. पा सदियों का स्नेह पलों में
    न जाने अब तरसता क्यों है

    सुंदर शब्द संयोजन है कुसुम जी।
    अच्छी कविता बन पड़ी है।

    आभार

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  5. ठहर न पाया जो सदियों तक
    उसके लिए सिसकता क्यों है
    बहुत खूब। धन्यवाद। शुभकामनायें

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  6. पा सदियों का स्नेह पलों में
    न जाने अब तरसता क्यों है

    यही तो त्रासदी है जितना मिल जाये और चाह बढ जाती है………………सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  7. आप सबों को बहुत बहुत धन्यवाद !!

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  8. ठहर न पाया जो सदियों तक
    उसके लिए सिसकता क्यों है
    such deep & emotional lines.... excellent is d only word....

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  9. सुन्दर ...मन की कोमल अनुभूतियाँ सामने आयी . आपके कवि-मन को बधाई.....

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