"न तुम्हें देखा मैं ने , न तुमने मुझको"
न तुम्हें देखा मैं ने , न तुमने मुझको
न तुम्हें देखा मैं ने , न तुमने मुझको
फिर कैसी ये प्रीत, बतलाऊँ किसको?
लगी कैसी लगन, रहूँ मैं यूँ मगन
धरूँ ध्यान किसीका , पाऊँ मैं तुझको
क्या है तुम में वो, बात जपूँ दिन रात
कहूँ कैसे न मैं, समझूँ मैं तुमको
कहो तुम जो वही, लगे मुझको सही
क्यों न करूँ विश्वास, है अगन मुझको
मिला जब से है मीत, रुचे सब रीत
देखूँ उसे भी न तो, जँचे उसको
- कुसुम ठाकुर -
क्या है तुम में वो, बात जपूँ दिन रात
कहूँ कैसे न मैं, समझूँ मैं तुमको
कहो तुम जो वही, लगे मुझको सही
क्यों न करूँ विश्वास, है अगन मुझको
मिला जब से है मीत, रुचे सब रीत
देखूँ उसे भी न तो, जँचे उसको
- कुसुम ठाकुर -
nice..
ReplyDeleteलगी कैसी लगन, रहूँ मैं यूँ मगन
ReplyDeleteधरूँ ध्यान किसीका , पाऊँ मैं तुझको
ऐसा ही/भी होता है
सुन्दर रचना
ध्यान किसी का पाना तुमको अच्छा है संवाद।
ReplyDeleteजहाँ लगन से मगन कुसुम है नहीं कोई अवसाद।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
nice
ReplyDeleteबहुत बढ़िया.
ReplyDeletebahut khub
ReplyDeleteफिर से प्रशंसनीय रचना - बधाई
SUNDER !
ReplyDeleteआप सबों का आभार !!
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