Saturday, June 5, 2010

न तुम्हें देखा मैं ने , न तुमने मुझको

"न तुम्हें देखा मैं ने , न तुमने मुझको" 

न तुम्हें देखा मैं ने , न तुमने मुझको  
फिर कैसी ये प्रीत, बतलाऊँ किसको?

लगी कैसी लगन, रहूँ मैं यूँ मगन 
धरूँ ध्यान किसीका , पाऊँ मैं तुझको

क्या है तुम में वो, बात जपूँ दिन रात
कहूँ कैसे न मैं, समझूँ मैं तुमको

कहो तुम जो वही, लगे मुझको सही
क्यों न करूँ विश्वास, है अगन मुझको

मिला जब से है मीत, रुचे सब रीत
देखूँ उसे भी न तो, जँचे उसको

- कुसुम ठाकुर - 



8 comments:

  1. लगी कैसी लगन, रहूँ मैं यूँ मगन
    धरूँ ध्यान किसीका , पाऊँ मैं तुझको
    ऐसा ही/भी होता है
    सुन्दर रचना

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  2. ध्यान किसी का पाना तुमको अच्छा है संवाद।
    जहाँ लगन से मगन कुसुम है नहीं कोई अवसाद।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288

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  3. bahut khub



    फिर से प्रशंसनीय रचना - बधाई

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  4. आप सबों का आभार !!

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