" रुख हवा की न बदले यही चाहती हूँ "
रुख हवा की न बदले यही चाहती हूँ
और ज़फा से रहूँ दूर यही चाहती हूँ
दूरियाँ तो न चाही सिफर ही मिला
यादों को बसा लूँ यही चाहती हूँ
तबस्सुम तो है पर शिकन कम नहीं
बस आँसू न निकले यही चाहती हूँ
जिन्दगी के सफ़र से तो दहशत नहीं
पर तन्हा न रहूँ बस यही चाहती हूँ
क्या यादों के मंज़र से निकलूँ कभी
उसे अपना बना लूँ यही चाहती हूँ
- कुसुम ठाकुर -
"अच्छी भावाभिव्यक्ति........."
ReplyDeleteamitraghat.blogspot.com
bahut sundar bhaav.
ReplyDeleteदूरियाँ तो न चाही सिफर ही मिला
ReplyDeleteयादों को बसा लूँ यही चाहती हूँ
सुंदर भावो को अभिव्यक्त करती हुई रचना
आभार
जिन्दगी के सफ़र से तो दहशत नहीं
ReplyDeleteपर तन्हा रहूँ बस यही चाहती हू
kusm aap ki tanhai aapko tanha nahi kerti magar padhne wale apni apni tanhaeyon mein kho jatehai ...wah khoob doobker likhii aapne ye kavita
बहुत खूब।
ReplyDelete...सुन्दर रचना,बधाई!!!!
ReplyDeleteसुंदर भावो को अभिव्यक्त करती हुई रचना
ReplyDeleteआभार
nice..................
ReplyDeleteबहुत बढिया लिखा है....कहते है जितना यादों को भलाना चाहो, उतना ही यादें सताती है....
ReplyDeleteपास बुलाओं तो दुर जाती है...
दूर जाओ तो पास बुलाती है....