Friday, March 19, 2010

रुख हवा का न बदले यही चाहती हूँ


" रुख हवा की न बदले यही चाहती हूँ "

रुख हवा की न बदले यही चाहती हूँ
और ज़फा से रहूँ दूर यही चाहती हूँ

दूरियाँ तो न चाही सिफर ही मिला
यादों को बसा लूँ यही चाहती हूँ

तबस्सुम तो है पर शिकन कम नहीं
बस आँसू न निकले यही चाहती हूँ

जिन्दगी के सफ़र से तो दहशत नहीं
पर तन्हा न रहूँ बस यही चाहती हूँ

क्या यादों के मंज़र से निकलूँ कभी
उसे अपना बना लूँ यही चाहती हूँ

- कुसुम ठाकुर -

9 comments:

  1. "अच्छी भावाभिव्यक्ति........."
    amitraghat.blogspot.com

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  2. दूरियाँ तो न चाही सिफर ही मिला
    यादों को बसा लूँ यही चाहती हूँ


    सुंदर भावो को अभिव्यक्त करती हुई रचना

    आभार

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  3. जिन्दगी के सफ़र से तो दहशत नहीं
    पर तन्हा रहूँ बस यही चाहती हू
    kusm aap ki tanhai aapko tanha nahi kerti magar padhne wale apni apni tanhaeyon mein kho jatehai ...wah khoob doobker likhii aapne ye kavita

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  4. ...सुन्दर रचना,बधाई!!!!

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  5. सुंदर भावो को अभिव्यक्त करती हुई रचना

    आभार

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  6. बहुत बढिया लिखा है....कहते है जितना यादों को भलाना चाहो, उतना ही यादें सताती है....
    पास बुलाओं तो दुर जाती है...
    दूर जाओ तो पास बुलाती है....

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