Saturday, November 7, 2009

संजो रही बस स्मृतियों को




"संजो रही बस स्मृतियों को "


समय भी इतना बदल जायेगा कभी सोची न थी ।
कभी हम भी सोचेंगे अपने लिए सोची न थी ।


हम तो रहते थे प्रतिपल ,
स्नेह सुधा लुटाने को ।
स्वयं के लिए न सोची अब तक ,
आज लगे सब बदला बदला ।
समय भी इतना बदल जाएगा कभी सोची न थी ।
कभी हम भी सोचेंगे अपने लिए सोची न थी ।


खुशियों की तो बात ही क्या है ,
वह तो अपनो के सँग है ।
अब हम हर पल वारें किस पर ,
दूर देश मे वे बसते हैं ।
समय भी इतना बदल जायेगा कभी सोची न थी ।
कभी हम भी सोचेंगे अपने लिए सोची न थी ।


यह मन बसता अब भी उनपर ,
जो हैं हमसे कोसों दूर ।
पर आह्लाद करें हम कैसे
संजो रही बस स्मृतियों को ।
समय भी इतना बदल जाएगा कभी सोची न थी ।
कभी हम भी सोचेंगे अपने लिए सोची न थी ।


- कुसुम ठाकुर -

8 comments:

  1. waah !

    bahut achhi kavita.........

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  2. बहुत अच्छी रचना...बधाई...
    नीरज

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  3. सुन्दर भाव।

    भूत भबिष्यत वर्तमान की ढ़ूँढ़ रहीं पदचाप।
    अच्छा लगा कि अपने बारे सोच रहीं हैं आप।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  4. खुशियों की तो बात ही क्या है ,
    वह तो अपनो के सँग है ।
    अब हम हर पल वारें किस पर ,
    दूर देश मे वे बसते हैं ।
    kya baat hai.. bahut khoob....

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  5. bahut khubsurat kavita aapki..badhai swiakre..chandrapal

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  6. यह मन बसता अब भी उनपर ,
    जो हैं हमसे कोसों दूर
    मन की बात कह दी आपने... अच्छा लगा.

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  7. समय भी इतना बदल जायेगा कभी सोची न थी ।
    कभी हम भी सोचेंगे अपने लिए सोची न थी ।

    ----- bahut hi badhiya ..ek acchi rachana

    ---eksacchai { AAWAZ }

    http://eksacchai.blogspot.com

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